पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४७६

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आखिरी कलाम

पहिले नावें कर लीन्हा। जेइ लिउ दीन्ह, बोल मुख कीन्हा। दिन्हेसि सिर जो पागा। बिन्देसि कया जो पहि बागा ॥ सवार दिन्हेसि नयन जोति, उजियारा । दिन्हेसि देखें कहें संसारा ॥ दिन्हेसि स्टेशन बात जेहि सुनै । दिन्हेसि बुद्धि, ज्ञान बहु गुनै । दिन्हेसि नासिक लीजे बासा । दिन्हेसि मन सुगंध बिरासा॥ दीन्हेसि जीभ बैन रस भावै । दीन्हेसि भुगुति, साध सब रावै । दीन्हेसि दसन, सुरंग कपोला। दीन्हसि अंधेर जे ने लैबोला ॥ दीन्हेसि बदन सुरूप रंग, दिन्हसि माथे भाग । देख़ि दयाल, ‘मुहम्मद, सीस नाइ पद लाग ॥ १ ॥ दीन्हेसि कंठ बोल हि माहां । दीन्हेसि "जादंड, बल बाहर्ता । । दीन्हेसि हिथा भोग जेहि जमा। टीन्हेसि पाँच भूतआातमा ॥ दीन्हेसिम बदन सीत श्री घामू। दीन्हेसि सुक्ख नींद बिसरामू दीन्हेसि हाथ चाह जस कीलैं। दीन्हेसि कर पल्लव गहि लीजें । । दीन्हसि रहस कूद बह तेर ।। दीन्हेमि हरष हिया बह मेरा । दीन्हेसि बैठक आासन मारे । दीन्हसि दूत जो उठे सँभारें । दीन्हे मवै संपूरन काया । दीन्हेसि द चल क पाया ।। दीन्हेमि न नौ फाटका, दिन्हेसि दसवें दुबार । सो अस दानि ‘मुहम्मद, तिन्ह के हीं बलिहार ॥ २ ॥ । मरम नैन कर अँधेरे मा। लेहि विहरे संसार न सूझा। ॥ मरम खेवन कर बहिरं जीना। जो न , कि वीजे साना ॥ मरम जीभ कर 'गे पावा। साध मरे, पे निकर न लगवाँ । मरम बाहें के छले चीन्हा। जेहि बिधि हाथन्ह पाँगुर दीन्हा ॥ मरम कया की भेटा। नित चिरकट जो रहे लपेटा । मरम बैठ उठ तेहि से गुना। जो रे मिरिग करतूरी हाँ ॥ (?) मरम दाहोइ पार्टी के तेहिद * । अपाय भुईं चल बर्दा अति सूख दीन्ह बिधतेऔ सब सेवक ताहि । आापन मरम ‘मुहम्मद, अबहूँ सम्भ . कि नाहि ॥ ३ । (१) बागा = पहनावा, पोशाक। विरासा = विलास। रढूं = रंग जाते हैं। (२) र हम = ग्रानंद। मेर = मेल, भाँति । फटका = नव द्वार । (३) बिहॐ = फूटने पर । सान दी = इशारा कोजिए (तो सम) (धी) । निरकुट = चीथड़ा। विधात् = विधाता ने ।