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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४७८

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२९६
आखिरी कलाम

२९६ आखिरी कलाम जो ठाकुर अस दारुभ, सेवक तहें निरदोख । करै ‘मुहम्मद, तौ पे होइहि मोख रतन एक बिधने अवतारा। नार्वे ‘मुहम्मद जग उजियारा ॥ चारि मीत चहें दिसि गजमोती। माँ दिपे मन मानिक जोती ! जेहि हित सिरजा सात समंदा । सातह दीप भए एक ठंदा ! तर पर चौदह भवन उसारे। बिख विच खंड बिखंड सँवारे ॥ धरती ग्री गिरि मेरु पहरा। सरग चाँद सूरज ग्री तारा ॥ सहस अठारह दुनिया सिदै। आावत जात " ।। जतरा कर जेइ नहिं लीन्ह जनम महें नाऊँ। तेहि कहूँ कीन्ह नरक महें टाऊँ। सो अस दैड न राखाजेहि कारन सब कीन्ह । दहें तुम काह्न मुहम्मदएहि पृथिवी चित दीन्ह ॥ ७ ॥ बावर साह खानपति राजा। राज पाट उन कहें त्रिदि साजा ॥ मलक मुलेमाँ कर मोहि दीन्हा । दल द्वनी ऊमर जस कीन्हा ॥ अली के र जस कीन्हेसि खड़ा । लीन्हेसि जगत समुद भरि डाँड़ा । बल हमजा कर जैस भारा। जो बरियार उठा तेहि मारा । पहलवान नाए सब शादी। रहा न कतहु बाद । करि वादी बड परताप नाप तप साहै। धरम के पंथ दई चिन बांधे । दरव जोरि सब काहुहि दिए । आापुन विरह ग्राउ जम लिए राजा होइ करेसवडि, जगत मर्ती राज । तब अस कहें ‘मुहम्मद कीन्हा कि काज मानिक एक पाएगें उजियारा । सैयद आसरप पीर पियारा ॥ जहाँगीर चिस्ती निरमरा। कुल जग महूँ दीपक त्रिधि धरा ॥ श्र निहंग दरिया जल माहाँ । बूड़त करें धरि काढ़त वाहाँ ॥ समुद माहें जो बोहति फिरई । लेने नार्वे सौतें होइ तरई तिन्ह पर हीं मुरीद, सो पी। सँवरत बिनु गुन लावे तीरू ॥ कर गति धरमपंथ देखरावा। गा भला तेहि मारग लाबा । जो आस पुरुषहि मन चित लावै । इच्छा पूजे , नास तुलावे ॥ जी चालिस दिन सेवे, बार बुहारै. । कह दरसन हाइ 'मुहम्मद, पाप जाइ सब ोड़ : & ॥ अनुपम वृक्ष और भवन थे । इसके तैयार हो जाने पर ज्योहीं वह इसके भीतर घुसेना चाहता था कि ईश्वर के कोष से दरवाजे पर ही उसके प्राण निकल गए । सेवक ताँ =अपने बंदों या में खेतों के लिये। निरदोख = अच्छे स्वभाव का, सुशील । (७) (र पर = नीचे ऊपर सारे = खड़े वि-ए, स्थापित किए (८) ऊमर = खलीफा उमर । पहलवान = योद्धा, वीर नाए == । भ काए शादी =पूरेबिलकुल । आउ जस के चायु भर की कीति । () निहंग = बिलबूल । बार = द्वार ।