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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४८१

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प्राखिरी कलाम २९ र . लागे । पुमि मैका इल प्रायसु पाए। उन बहु भाँति मेघ बरसाए पहिले गारा । धरती संरग होझ उजियारा लागी ने पिरथिवीं जरें । पात्र पाथर सौ सौ मन के एक ए सिला । चलें डि घटि आवें मिला गोट तर छूट भारी। ढं रूख बिरुख सब झारी परत धमाकि धरति सब हालै । उधिरत उठे सरग लॉ सार्ग अधाधार भौंती । लागि रहै चालिस दिन राती जिया जंतु सब मरि , जित सिरजा संसार बोइ न रहै ‘महमद, होइ बीता संसार II१६। जिबरईल फरमान । श्राइ सिस्टि देखव मैदान जियत न रहा जगत ने ठा। सारा झोरि कचरि सध गा मरि गंधाहि, साँस नहि प्रावै ठे विगंधसडाइव आाब जाड़ देउसे करह बिनाती। कहब जाइ जस देखत भती जा सिस्टि जगत उजाड़े सून संसा दिसा उजा, सब मारा। कोइ न रहा नावें लेनिहा मार मौछ ज पर दी पार्टी 1 परे पिठानि न, दीखे मटी सून पिरथिवीं हो गई, दहें धरती सब लीप जेतनी सिस्टि ‘हम्भद, सवें इ जल दीप १७ , मकाईल पुनि कहब द लाई। बरस, मेघ पिरथिवीं जाई ॥ उनै मेघ भरि उहैिं पानी। गर िगरजि बरसह अतवानी झरी लागि चलिन दिन रात घरी न निकुसे एकढ़ गाँती छुटि गानि परलम की नाई । चढ़ा छापि संगरिर्दी दुनियाई व टहि पहारा। जल हु नि उमड़ न असरारा सून पिरविीं होइति, बुसे एतनि जो सिस्टि मुहम्मद, सो कहें गई हेराइ 1१८ इसराफीलहि फरमाए । हूं, संसार उ!ए दै मुन्ष सूर भरे जो साँसा । डोलै धरती, लत अकाता , । (१६) मैकाइल = मचाईल नामक रिश्ता । त्रुटि = जमकर गोट गोले । उधिरत उठे उड़ती या उचटती जाती है । (१७) जिबरईल फरिश्ता। क5, है । जल दीप नदी या समुद्र के बीच पड़ा मुनसrत टापू (१८) सेंकाईल = एक फरिश्ता। - वानी = (?)। निंबुले (मेह) मता निकलता है। लि = ठिलकर। असरा = लगातार (१९) इसराफोल एक फरिश्ता सू = तुरही बाजा (अरबी)