पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४८८

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३०६
आखिरी कलाम

३०६ आखिरी कलाम लेखि जोखि जो अवैम रन गंजन दुख दाढ़ । सो सब सहै 'मुहम्मद, दुखी करहु जनि काह ॥ ३७ ॥ पुन रिसाइ के कहै गोसाई। फातिम कह डू रेंद्रट्हु दुनियाईं ॥ का मोसों उन नगर पसारा। हसन हु सैन कहीं को मारा। ढ़ है जगत कतना पैहैं । फिरि के जाइ मारि गोहहैं ॥ दुटि जगत दुनिया सव ग्राएगें। फातिम खोज कतईं ना पाएगें । घायल होझ, अहैं पुनि कहाँ। उठा नाद हैं धरती महाँ ॥ ‘म दे नैन सकल संसारा। बीबी उठे, करें निस्तारा। जो कोई देरी नैन उपारी । तेहि कह छार क धरि जारी॥ मायसु होहि देउ करनैन रहैं सब झांषि । एक ओर मुहम्मद, उमत मरै डरि काँपि ॥ ३८ उट्टिन बीबी तब रिस कह । हसन हुसेन दुवी संग लिहें ॥ ‘तें करता हरता सब जानसि। झूठे फ्रं रे नीक पहिचानसि ॥ हसन हुसेन दुवौ मोर वारे। दुनह यजीद कौन गुन मारे ? ॥ ‘पहिले मोर नियाब निबारू। तेहि पाछ जेतना संसारू । समुझे जोउ प्राणि महूँ दह। देह दादि तो चुप के रह । नहि त देर सराप रिसाई। मार्ग प्राहि अर्श जरि जाई ॥ बहु संताप उर्ट निजकैसर्फ़ सहैि न जाइ । वजह मोह ‘मुहम्मद, अधिक उठे दुख दाइ ॥ ! ३९ नि , रसूल कहें आयग्र होई | फातिम कद सपाबहु सोई॥ मार प्राहि आगे जरि जाई। तेहि पाछ श्राहि पठिताई ॥ ‘जो नहि बात क क’ विषादू । जन मोहि दन्ह परस्दू ।। जो बीबी बड़हि यह दोखू। ही में करों ' के मोख । उमा ॥ ‘नाहि त घालि नरक नह जाऐं। लौटि जिग्राइ गुएपर मार्क । ‘अनि खंभ देख ग्रागे । हार 'चह दिमि फेरि संरग लै लावाँ । झंगरन्ह मारोंलोह चटावों जत हिरकत होड़ तेरह लागे । तेहि पाछे वरि मार्गघालि नरक के कठ । बोबी क; ससुझावह, जौ रे उमत के जाँट ४० I () बीवी मुहम्मद साहब जिसके दो ६८फातिम = फातिमा, को कन्या लडके हसन श्रीर सैन करबला के मैदान में कष्ट से मारे गए और कोई बड़ा न हथा। मारि = बहुत (अवध) । गोहरहैं प्रकारेंगे । नाद = नाकाश = वाणौं । (३६) fकह, लिहें = किए लिए (अवध) । बारे = बालक, लड़क। दादि देह = इंसाफ करो अॐ = आसमान (का सबसे ऊँचा तबक) । दुख दाद =खदाह । (४०) जान मोहि..परसाद = ता समझो कि मैं प्रसन्न हो गया या मैंने बख्श दिया । लौटि = फिर फिर । हिरकर = सटते ही। कम = किनारे, तट पर । जो रे..चाँट = यदि तुम्हें अपनी उम्मत की इतनी चाह है।