पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३०८
आखिरी कलाम

३० ८ आखिरी कलाम जबरईल चलव पुनि कौसर पठउब अन्हवाई । जहाँ का निरल सब पावै । घुड़की देब देह सुख लगी। पलुहब उठि, सोवत अस जागी । खोरि _नहाइ धोइ “सब जूहूं । होई निबह पूनिऊ के । सब क सरोर (ास बसाई । चंदन के अस घानी आई ।॥ ठे सव आप पुनि सबै । सबहि नवी के पीछे बचे ॥ नविहि डि होइ हि सवहिबारह बरस क राह । सब घस जान ‘मुहम्मद, होझ बरस के राइ ।।४४ ॥ पुनि रसूल नेवतव जेवनारा। बहत भांति होइ हि परकारा ॥ ना अस देखा, ना अस सुना। जो सरहों तो है गुना दस ।। पुन अनेक बिस्तर तई डासब। बास सूम कपूर ने बासव ।। आास ज गि बोलाउच । औो संसद उमत सथ लेइ आाउद ।। ह पग डा’ कहें घायसू देइहें रसूल उमत लेइ सथा। परग परग पर नावत माथा ! 'प्रावह भीतर' गि बोलाउब। बिस्तर जहां तहाँ बैठाउत्र ॥ झारि बैठीपति ! उमत। सव , जोरि के एके के 'मुहम्मद, जान दुलह बराति ॥ ४५ ॥ मा पुनि जैवन कह प्रार्ध लाभै। सबके ग्रागे धरत न खाग I भाँति भाँति । जानब ना । कर देखब थारा पुनि दह केन प्रकारा फरमउव श्राप गामा बहुत । दख ॥ हान्ह से जवन म घु डारत । जभ पसारत दाँत उघारत ॥ ख देख3 नियाई कूचत बहत दख पाएछ । जेबॉएड ॥ खात ग्रब जिन लौटि कस्ट जिद करह। सुख सवाद औ इंद्री भरहू तह ऐसे जवनार भूत सेराई। बैटि अघाडउदर ना भाई ऐस करव पहुनाई, तब होइटूि - संतोख । दुखी न होह ‘मुहम्मद’ पोखि लेह फुर पोख 1४६। हाथन्ह से केह गौर न लेई । जोइ चाह मख ठे सोई ।। दत्त, जीभ, मख किट न डोलाउव। जस जस रुचि है तस तस खाउच ॥ जेस अन्न विन हर्च । तैस सिठाइ जौ कोऊ कौंचे। ॥ दू, चे पनपेगी। (४४) कीसर = स्वर्ग की एक नदी या चश्मा । बडकी = गोता । पहु- ढ र। (४५) ज .दस हूं तो Tर ग्रवगाहन करके। दंद्र द्वंद, प्रपंच । घाना = टकरता है। सरहोगुना = यदि सराहता उसका दस गुना (४६) तर्ट्स । लौटि हो । उदर ना भाई = यहाँ पेट नहीं है जिसे भरना पढ़ । फुर पोख = सूची संसार में =स्वर्ग में लीट आकर 1 सेराई = शीतल तुष्टि । (४७) तैस सिठाई ‘ऊढूं = कू चने पर वह वैसा ही सीटी सा नीरस लगता ह ।