पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४९१

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आखिरी कलाम ३०९ एक एक परकार जो आाए। सत्तर सत्तर स्वाद सो पाए। जाड़े के पर जुड़ा । इच्छा पूजे ,खाई अघाई अनचाखे राते: फर, चाखा । सब अस लेइ अपरस रस चाखा । जलम जलम के भूख बुझाई। भोजन के साथ जाई जैवन प्रचवन होइ पुनि, पुनि होइहि खिलवान । मृत है कटार, पियह ‘मुहम्मदपान ।।४७। भरा एक तो अमत, बास कपूरा। तेहि कह रहा शराब तहुरा लागब भरि भरि देइ कोरा। पुष ज्ञान स भरे महोरा ॥ श्रोहि के मिटा भांति एक दऊँ। जलम न मानव होइ अब काह्न । सघु मतवार रहब होड़ सदा। रहस कूद सदा सरबदा । कह न खोवे जलम खुमारी। जनौ बिहान उठे भरि बारी। ततखन वासि बासि जनु बाला । घगे घरो जस लेब पियाला ।। सहि क ा सन सो मद पिया। नव श्रौतार भवा औ जिया।। फि; तोल, मया से, कहब ‘अपुन लेइ खाह। भा परसाद, ‘मुहम्मद, उ2ि बिहिस्त म“ह जाह ' ४८ । कब रसूल, बिहिस्त न जाऊँ। जौ लगि दरस तुम्हार न पाऊँ।। उघर न नैन तुमहंह विदु देखे । सबहि अबिरथा मोरे लेखे ? तीं ले बेहु बैकुंठ न जाई । जो लै तुम्हारा दरस न पाई ।। करु दीदार, देखों में टोही। तT है जीड जाइ सुख मोहीं ।। देखें दरए नैन भरि लेगें। सीस नाइ मै भुड कह देखें। जलम मोर सब था । पलु है जीड जो गोउ उभारा। लागा होड़ दयाल दिस्टि फिगवा । तोहि छाँईि मोहिं और न भावा ॥ कर सीस पाय भुइ लावों, जौ देखीं तोहि आख़ि । दरसन देखि ‘मुहम्मद, हिये भरीं तोरि ४९ा वि' । सुनहु रल ! होत फरमातु । बोल तुम्हार कोन्ह परमान ।। तहाँ हतलें जह हुते न ठाऊँ। पहिले रचेज मुहम्मद नई । सिटाइ = सीटी सा फीका लगता है । अपरस = अता ॥ जलम = जन्म टन, खरबूज आादि के तले बोज जो भोजन के पोछ दिए जाते हैं) । (४८) शराब तहुरा = शरबुक्तहुरास्वर्ग की महोर= हुआरा, मध। राजू मतवार = ग्रानंद से मतवा ना। बिहान बारी = मानो नित्य ह तक भरा है । प्याला मिल जाता परसाद = प्रसन्नता. कृपा। (४९) बिरथ =, = वृथा, व्यर्थ। जाई जाइहि, जायगा। पाई = पाइहैि, पाएगा। जाइ = उत्पन्न हो । जलम = जन्म । थारा = थाला लगाया जाता है। गीड उभारा = गर्दन ऊपर की, ऊपर द्रष्टि की। । हू ने = में था । हुतेड़ न ठाॐ = जहाँ कोई स्थान न था, (जिसमें पौधा