पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४९२

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आखिरी कलाम

३१ आखिरी कलाम तुम बिनु अवह न परगट कीम्हऊ । सहस अठारह कहें जिउ दीन्हड ॥ चौदह खंड ऊपर तर राखेड़ें । नाद चलाड़ भेद बहु भाखेड़ें ।। चार दैिरिस्तिन बड़े औोताऊं सात वंड बैकुंठ संवाँरेखें । : सवा लाख पैगंबर सिरजेईं। कर करमृति उन्हह व बेधड़े । औौरन्ह कर भागे कत लेख । जेतना सिरजा को प्रोहि देखा । तुम तहें एसा सिरजा, श्राप के अंतरहत । देवह दरस 'मुहम्मद' ! ग्रापनि उमत समेत 1५०। सुनि फरमान हरण जिउ बाढ़ । एक पाँव से भए उ2ि ठाढ़े । झारि उमत लागी तब तारी। जेता सिरजा पुरुष । औौ नारी॥ लाग सबन्ह सटू दरसन हई। मोहि बिनु देख रहा न कोई ॥ एक चमतार हs उजियारा। पे बीड तेहि के चमकारा । t चाँद सुज पिहें बह जोती । रतन पदारथ मानिक मोती ।। सो मनि दिमें जो कोन्हि धिराई। पा सो रंग गात भर जाड़े ॥ मोह रूप निरमल होइ जाई। ऑौर रूप श्रोहि रूप समाई t ना अस बह देखा, ना केह श्रोहि भति । दरसन देखि मुहम्मद मोहि परे वह मति 1५१। दुइ दिन लहि वोउ मुधि न कुंभारे। बिनु सुवि रहे, नैन उघारे ॥ न तिसरे दिन जिनरैल जौ ग्राए। मदमाते सब आानि जगाए !! जे झिय भेदि सुदरसन राहे। परे पर लौटें जस माते ! सव अस्तुति है क. विमेखा । हम ऐस रूप कतई न देखा । अब सब गएड जलम दुख धोई। जो चाहिय हति पावा सोई !। अरु नितित जी विधि कीन्हा। जी पिय प्रापन दरमन दीन्हा। मन के जेति प्रास सब प्रजी। रही न कोई ग्रास गति दृजी ॥ मरन, गहन श्री परिहस, दुखदलिद्र सब भाग । सब सुछ देखि ‘, रहस 11५२ मुहम्मदकूद जिउ लाग । जिबराइल । ग्राड जोइदि कह ग्राय होइयह यूरिन्ह ग्रा पथ । उमर रसूद केर बहिराउव । सवार बिहिस्त पहुचाउब ! सात त्रिहिस्त विधिवें औौतारा। अंक अठई शदाद सवा । सो सब देव उमत हूँ बाँटी। एक बराबर सब कह पाँटी ॥ अबढ = अब तक। नाद : कलाम । कहि करीति = कर्तव्य बतलाकर। अंतरत = नोट में, अदृश्य । (५१) झारि = सारे, कुल । तारी लागी = टकटकी लग गई, पलकों का गिरना बंद हो गया सह = संमुख, साक्षातु : चमकार = चमत्कार, ज्योति । कोन्हि थिगईस्थिर रह सके । छपा सो रंग चाई = उनके शरीर पर उस ज्योति की छाप लग गई। (५२) लहि = तक है . परिहरा = ईष्र्या, डाह, कुढ़न (अवध) । रह = प्रानंद । (५३) अछरी अप्सरा। बहिराउव = निकालेंगेचलाएंगे।