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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/७५

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आगे चले बहुरि रघुराया। ऋष्यमूक पर्वत नियराया।।
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सीवा।।
अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना।।
धरि बटुरूप देखु तैं जाई। कहेसि जानि जिय सैन बुझाई।।

हितोपदेश, कथासरित्सागर, सिंहासन बत्तीसी, वैताल पच्चीसी आदि की कहानियाँ इतिवत्त रूप में ही हैं, इसी से उन्हें कोई काव्य नहीं कहता। ऐसी कहानियों से भी श्रोता या पाठक का मनोरंजन होता है पर वह काव्य के मनोरंजन से भिन्न होता है। रसात्मक वाक्यों में मनुष्य के हृदय को वृत्तियाँ लीन होती हैं और इतिवृत्त से उसको जिज्ञासावृत्ति तुष्ट होती है। 'तब क्या हुआ?' इस वाक्य द्वारा श्रोता अपनी जिज्ञासा प्रायः प्रकट करते हैं। इससे प्रत्यक्ष है कि जो कहा गया है उसमें कुछ देर के लिये भी श्रोता का ह्रदय रमा नहीं है, आगे की बात जानने को उत्कंठा हो मुख्य है। कोरी कहानियों में मनोरंजन इसी कुतूहलपूर्ण जिज्ञासा के रूप में होता है। उनके द्वारा हृदय की वृत्तियों (रति, शोक आदि) का व्यायाम नहीं होता, जिज्ञासावृत्ति का व्यायाम होता है। उनका प्रधान गुण घटनावैचित्य द्वारा कुतुहल को बनाए रखना ही होता है। कही जानेवाली कहानियाँ अधिकतर ऐसी ही होती हैं। पर कुछ कहानियाँ ऐसी भी जनसाधारण के बीच प्रचलित होती हैं जिनके बीच बीच में भावोदेवा करनेवालो दशाएँ भोपडतो चलती हैं। इन्हें हम रसात्मक कहानियाँ कह सकते हैं। इनमें भावकता का अंश बहुत कुछ होता है और ये अपढ़ जनता के बीच प्रबंधकाव्य का ही काम देती हैं। इनमें जहाँ जहाँ मार्मिक स्थल पाते हैं वहाँ वहाँ कथोपकथन आदि के रूप में कुछ पद्य या गाना रहता है।

ऐसी रसात्मक कहानियों का घटनाचक्र ही ऐसा होता है जिसके भीतर सुखदःख-पूर्ण जीवनदशाओं का बहुत कुछ समावेश रहता है। पहले कहा जा चुका है कि 'पद्मिनी और हीरामन तोते को कहानो' इसी प्रकार को है। इसके घटनाचक्र के भीतर प्रेम, वियोग, माता की ममता, यात्रा का कष्ट, विपत्ति, आनंदोत्सव, युद्ध, जय, पराजय आदि के साथ साथ विश्वासघात, वैर, छल, स्वामिभक्ति. पातिव्रत, वीरता प्रादि का भी विधान है। पर 'पद्मावत' शृंगारप्रधान काव्य है। इसी से इसके घटनाचक्र के भीतर जीवनदशाओं और मानव संबंधों को वह अनेकरूपता नहीं है जो रामचरितमानस में है। इसमें रामायण की अपेक्षा बहुत कम मानव दशानों और संबंधों का रसपूर्ण प्रदर्शन और बहुत कम प्रकार के चरित्रों का समावेश है। इसका मुख्य कारण यह है कि जायसी का लक्ष्य प्रेमपथ का निरूपण है। जो कुछ हो, यह अवश्य मानना पड़ता है कि रसात्मकता के संचार के लिये प्रबंधकाव्य का जैसा घटनाचक्र चाहिए पद्मावत का वैसा ही है। चाहे इसमें अधिक जीवन दशाओं को अंतर्भूत रनेवाला विस्तार और व्यापकत्व न हो, पर इसका स्वरूप बहुत ठीक है।