पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/८२

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कवि की यही पारमार्थिक प्रवृत्ति उसे हेतुत्प्रेक्षा की ओर ले जाती है। ऐसा जान पड़ता है, मानो उसी अमराई की छाया से ही संसार में रात होती है और आकाश हरा (प्राचीन दृष्टि हरे और नीले में इतना भेद नहीं करती थी) दिखाई देता है।

जैसा पहले कहा जा चुका है, जिन दृश्यों का माधुर्य भारतीय हृदय पर चिरकाल से अंकित चला आ रहा है उन्हें चुनने की सहृदयता जायसी का एक विशेष गुण है। भारत के शृंगारप्रिय हृदयों में 'पनिघट का दृश्य' एक विशेष स्थान रखता है। बूढ़े केशवदास ने पनिघट ही पर बैठे बैठे अपने सफेद बालों को कोसा था। सिंहल के पनिघट का वर्णन जायसी इस प्रकार करते हैं—

पानि भरै आवहिं पनिहारी। रूप सुरूप पदमिनी नारी॥
पदुम गंध तिन्ह अंग बसाहीं। भँवर लागि तिन्ह संग फिराहीं॥
लंक सिंघिनी, सारँग नैनी। हंस गामिनी, कोकिल बैनी॥
आवहिं झुंड सो पाँतिहि पाँती। गवन सोहाइ सो भाँतिहि भाँती॥
कनक कलस, मुख चंद दिपाहीं। रहस केलि सन आवहिं जाहीं॥
जा सहुँ वै हेरहिं चख नारी। बाँक नैन जनु हनहि कटारी॥
केस मेघावर सिर ता पाईं। चमकहिं दसन बीजु कै नाई॥

पद्मावती का अलौकिक रूप ही सारी आख्यायिका का आधार है। अतः कवि इन पनिहारियों के रूप की झलक दिखाकर पद्मावती के रूप के प्रति पहले ही से इस प्रकार उत्कंठा उत्पन्न करता है—

माथे कनक गागरी आवहिं रूप अनूप।
जेहिके अस पनिहारी सो रानी केहि रूप?

बाजार के वर्णन में 'हिंदू हाट' की अच्छी झलक मिल जाती है—

कनक हाट सब कुहुँकुहुँ लीपी। बैठ माहजन सिंघलदीपी॥
सोन रूप भल भएउ पसारा। धवल सिरी पोतहि घर बारा॥

जिस प्रकार नगर हाट के वर्णन से सुखसमृद्धि टपकती है उसी प्रकार गढ़ और राजद्वार के अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन से प्रताप और आतंक—

निति गढ़ बाँचि चलै ससि सूरू। नाहिं त होइ बाजि रथ चूरू॥
पौरी नवौ बज्र कै साजी। सहस सहस तहँ बैठे पाजी॥
फिरहिं पाँच कोटवार सुभौंरी। काँपै पाँव चपत वह पौरी॥

जलक्रीड़ा वर्णन—सिंहलद्वीपवर्णन के उपरांत सखियों सहित पद्मावती की जलक्रीड़ा का वर्णन है (दे° मानसरोदक खंड) । यद्यपि जायसी ने इस प्रकरण की योजना कौमार अवस्था के स्वाभाविक उल्लास और मायके की स्वच्छंदता की व्यंजना के लिये की है, पर सरोवर के जल में घुसी हुई कुमारियों का मनोहर दृश्य भी दिखाया है और जल में उनके केशों के लहराने आदि का चित्रण भी किया है—

धरी तीर सब कंचुकि सारी। सरवर मँह पैठीं सब नारी॥
पाइ नीर जानहु सब बेली। हुलसहिं करहिं काम कै केली॥