पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/८६

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बीस सहस घुम्मरहिं निसाना। गलगंजहि फेरहिं असमाना॥
बैरख ढाल गगन गा छाई। चला कटक धरती न समाई॥
सहस पाँति गज मत्त चलावा। घुसत कास धँसत भुंइँ आवा॥
बिरिछ उपारि पेड़ि स्यों लेहीं। मस्तक भारि तोरि मुख देहीं॥

कोउ काहू न सँभारे, होत आव डर चाप।
धरति आपु कहँ काँप, सरग आपु कहँ काँप॥

आवै डोलत सरग पतारू। काँपै धरति, न अँगवै भारू॥
टूटहिं परबत मेरु पहारा। होइ होइ चूरि उड़हिं होइ छारा॥
सत खंड धरती भई षट खंडा। ऊपर अस्ट भए बरह्मंडा॥
गगन छपान खेह तस छाई। सूरज छपा, रैनि होइ आई॥
दिनहिं राति अस परी अचाका। भा रवि अस्त, चंद रथ हाँका॥
मँदिरन्ह जगत दीप परगसे। पंथी चलत बसेरहि बसे॥
दिन के पंखि चरत उड़ि भागे। निसि के निसरि चरै सब लागे॥

कैसे घोर सृष्टिविप्लव का दृश्य जायसी ने सामने रखा है! मानव व्यापारों की व्यापकता और शक्तिमत्ता का प्रभाव वर्णन करने में जायसी को पूरी सफलता हुई है। मनुष्य की शक्ति तो देखिए! उसकी एक गति में सारी सृष्टि में खलबली पड़ गई है। पृथ्वी और प्रकाश दोनों हिल रहे हैं। एक के सात के छ ही खंड रहते दिखाई देते हैं और दूसरे के सात के आठ हुए जाते हैं। दिन की रात हो रही है। जिस जायसी ने विशुद्ध प्रेममार्ग में मनुष्य की मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति का साक्षात्कार किया—सच्चे प्रेमी की वियोगाग्‍नि की लपट को लोकलोकांतर में पहुँचाया—उन्होंने यहाँ उसकी भौतिक शक्ति का प्रसार दिखाया है।

इस वर्णन में बिंबग्रहण कराने के हेतु चित्रण का प्रयत्न भी पाया जाता है। इसमें कई व्यापारों की संश्लिष्ट योजना कई स्थलों पर दिखाई देती है। जैसे, हाथी पेड़ों को पेड़ी सहित उखाड़ लेते हैं, और फिर मस्तक झाड़ते हुए उन्हें तोड़कर मुँह में डाल लेते हैं। इस रूप में वर्णन न होकर यदि एक स्थान पर यह कहा जाता कि हाथी पेड़ उखाड़ लेते हैं, फिर कहीं कहा जाता कि वे मस्तक झाड़ते हैं और आगे चलकर यह कहा जाता कि वे डालियाँ मुँह में डाल लेते हैं तो यह संकेतरूप में (अर्थग्रहण मात्र कराने के लिये, चित्त में प्रतिबिंब उपस्थित करने के लिये नहीं) कथन मात्र होता, चित्रण न होता। इसी प्रकार पहाड़ टूटते हैं, टूटकर चूर चूर होते हैं और फिर धूल होकर ऊपर छा जाते हैं। इस पंक्ति में भी व्यापारों की शृंखला एक में गुथी हुई है। ये वर्णन संस्कृत चित्रणप्रणाली पर हैं। जिन व्यापारों या वस्तुओं में जायसी के हृदय की वृत्ति पूर्णतया लीन हुई है उनका ऐसा चित्रण मानों आपसे आप हो गया है।

इसके आगे राजा रत्नसेन के घोड़ों, हथियारों और उनकी सजावट आदि का अच्छे विस्तार के साथ वर्णन है। सब बातों की दृष्टि से यह युद्ध यात्रा-वर्णन सर्वांगपूर्ण कहा जा सकता है।

युद्धवर्णन—घमासान युद्ध वर्णन करने का भी जायसी ने अच्छा आयोजन