पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१३७

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अरणाजीदत्तो ज्ञानकोश (अ) १२४ अण्णाजीदत्तो चले थे उस समय संभाजी तथा जिजाई के संरक्षण- उल्लेख नहीं मिलता। केवल हुबली नगरकी लूट में भारके लिये अएगाजीको वहाँ ही छोड़ दिया था, अण्णाजीका विवरण मिलता है (१६७३ई०)। राणाजी दक्षिण कोकनसे भली भांति भिज्ञ थे हुबली उस समय व्यापार-क्षेत्रका केन्द्र बना हुआ इस लिये अफजलखाँ को पराजित करनेके पश्चात् था और ऐसा अनुमान किया जाता है कि सूरतसे अब शिवाजीने पन्हाला किला जीतनेका विचार भी अधिक यहाँ पर लूटका माल मिला होगा। किया तो इसे भागे ही भेज दिया था। इसके : किन्तु यहाँ पर अंग्रेज तथा अन्य विदेशी व्यापारी बाद स्वयं पहुँचकर २८ नवम्बर १६५६ ई० को बसे हुए थे, उनके विवरणसे पता चलता है कि शिवाजीने किला जीत लिया। शिवाजीके पास अराणाजीने शिवाजीको इस लूटका कुछ समाचार रहकर समय समय पर भरणाजी अपने गुणों का ही नहीं दिया। राजपुरकी लूटमें जो क्रूरता परिचय देने रूगे। शिवाजीने भी उसके गणित....दिखलाई गई थी उसके लिये शिवाजीने उन अधि. ज्ञान तथा कार्य-कुशलता पर मुग्ध होकर उसे २६ कारियोको दण्ड दिया था। कदाचित् इसी कारण अगस्त १६६१ ई० को 'बाकनीस' के पदपर से अण्णाजीने ऐसा किया होगा। जिस समय नियुक्त किया और पालकी (सवारी) दी। ख़ानगी १६६६ ई० में शिवाजी देहलीके मुगल बादशाह मामले की देख-रेख, राज्यके कारवारकी देख-भाल, औरंगजेबसे मिलने गये थे उस समय जिन तीन पत्र व्यवहार. दफ्तरका कुल काम देखना इत्यादि पुरुषों के ऊपर सम्पूर्ण भार सौंपा गया था उनमें एक कार्य उनके आधीन था। भोजनकी व्यवस्था अण्णाजी भी थे। इन लोगोने ५ मार्च १६६६ से निमन्त्रण इत्यादि भेजना भी इसीके अन्र्तगत होता २० नवम्बर १६६६ ई० तक बड़ी दक्षतासे कार्य था। इस पदके प्राप्त होनेके पहले ही अण्णाजी सँभाला था। इससे प्रसन्न होकर शिवाजीने इन को ज़मीनकी देख-भाल करना, सम्पूर्ण कर वसू- लोगोंको 'राज्यका आधारस्तम्भ' की उपाधीसे लना तथा अन्य राज्यव्यवस्थाके कार्य करने पड़ते विभूषित किया था। अराणाजीका कुल समय थे। क्योकि दादाजी कोंडदेव की मृत्युके पश्चात् कर निश्चित करने, गाँवके झगड़ोंका निपटाग इस कार्यके लिये यही प्रवीण समझे जाने लगे। फरने इत्यादिमें ही व्यतीत होता था! लड़ाई में अण्णाजीने कर वसूलने की पद्धति वहीं पुरानी | वे बहुत कम भाग लेने पाते थे किन्तु दक्षिणके रक्खी और बड़ी कुशलतासे इस कार्य का सम्पा- युद्धौमें उन्हें भाग लेना पड़ता था क्योंकि उस दन करते रहे। इन सब कारणोंसे प्रसन्न होकर श्रोरसे वह विशेषरूपसे भिज्ञ थे। पन्हालाका शिवाजीने ३ अप्रैल सन् १६६२ ई० को अराणाजी किला जो १६५४ ई० में जीता गया था वह बीजा- को सुरनिस अथवा सचिव (मन्त्री) के पदपर पुर वालोने सन् १६६२ ई० में फिर ले लिया था विभूषित किया। इस पदपर यह राज्यकी ओर और मराठोंके आधीन प्रदेशोंमें खवासखाँ दिन पर से सघ चिठ्ठी पत्री करते थे तथा परगनों और दिन अधिक अत्याचार बढ़ाता जाता था। अतः गाँवके हिसाब किताबको निरीक्षण करते थे। शिवाजीने १६७० ई० में पन्हालेको जो दक्षिण इसीके पास राज्यकी मोहर (Seal) रहती थी। की सरहदका मुख्य स्थान था लेने का निश्चय युद्धादिक प्रसंगपर राजाके हितका ध्यान रखकर किया। तदनुसार शिवाजीने अराणाजीको पन्हाला विचार करना इत्यादि कर्त्तव्य करने पड़ते थे। पर फिरसे अधिकार प्राप्त करने के लिये भेजा यद्यपि राज्य व्यवस्था इसने अत्युत्तम की थी, और जो प्रतिनिधि बीजापुरमै था वह वापस किसी कर्मचारी पर विश्वास न करके स्वयं ही बुला लिया गया। दो तीन दिनके बाद कुछ गुप्त गाँव गाँव घूमकर सब देख भाल किया करते थे परामर्श देकर अण्णाजीकी सहायता के लिये किन्तु युद्ध कार्यमें अराणाजीका विशेष महत्व नहीं कोडाजी इत्यादिके साथ बहुत से और आदमी देख पड़ता न उनके द्वारा कोई स्वतन्त्र युद्ध ही भेजे। अण्णाजी पहले ही से डटे थे, इन लोगों जीता गया। के ५ मार्च १६७३ ई० को पहुँचने पर रात्रिके शिवाजीने ६ जनवरी सन् १६६४ ई० को थाना निबिड अन्धकारमै किले पर इन लोगोने छापा जिलाके कोतवणके मार्गसे जाकर सूरत शहरपर मारकर चारों ओर हाहाकार मचा दिया । धावा किया था। उस समय अण्णाजी साथ थे। श्ररणाजी पिछले भागकी रक्षाके लिये कुछ सेना तदनन्तर दक्षिण भारत पर विजयके लिये जो चुने को लेकर जंगल में छिपे हुए थे। थोड़ी खड़ाई चुने लोग भेजे गये थे उनमें भी यह गये थे। दूसरे दिवस अर्थात् ६ मार्च को भी हुई किन्तु किन्तु इन लड़ाइयोंमें भी इनकी विशेष वीरताका विजय इन्हीं लोगोके हाथ रही और किला हस्त-