पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१४६

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। -- अति परगाणु विद्युत्कण ज्ञानकोश (अ) १३३ अति परमाणु विद्युत्करण दशाये-द्रव रूप, घन रूप, वायु रूप है उसी वात रहित अवकाशमें एक विद्युत्भारका विजातीय भाँति यह भी चौथी दशा है। विद्युत्भारसे मिलकर नष्ट होजाना सम्भव है। उसी अब यह प्रश्न उठता है कि यह किस भाँति भांति सदाके लिये अलग होकर जिधर चाहे उधर प्रमाणित किया जाय कि ऋणध वसे निकले हुए चला जाना भी सम्भव है। इस प्रकारके स्वतन्त्र परमाणुओंमें गति होती है। एक तो बातरहित | विद्युत्भारों को श्रर्थात् एकाको परमाणुसे अलग नलीमें किसी प्रकारको चक्ररचना करके उसमें हुए विद्युत्भार को अति परमाणुविद्युत्करण विद्युत्प्रवाह छोड़ने पर उन चक्रोंके घूमनेसे यह कहते हैं । प्रश्न हल हो जाता है, दूसरे यदि इन किरणोंके यदि उन चपल कणों की ओर जिनसे भूण- निकट घोड़ेकी नालके आकारका चुम्बक लोह ध्रुव किरण बनी है ध्यान दिया जाय तो ऐसा भास लगाया जाय तो ये अपने सीधे मार्गसे च्युत हो होने लगता है कि वे प्रायः अति परिमाणु-विद्युत् जाते हैं। इससे केवल यही नहीं सिद्ध होता कि कण ही होंगे क्यों कि उनमें विलक्षण चपलता, इन किरणौके परमाणु विद्युत्पूर्ण हैं बल्कि यह भी अत्यन्त वेग तथा फैलने की अगाधशक्ति इत्यादि प्रमाणित हो जाता है कि ये ऋण-विद्युतपूर्ण भी सभी गुण होते हैं। यद्यपि उनका समावेश किसी हैं। इसमें धन ( Poti tive ) विद्युत्पूर्ण परमा- भी द्रव्यमै न किया जासके तौभी यह कदापि नहीं शुओंका अधिक होना सम्भव नहीं मालूम होता। कहा जा सकता कि वे द्रव्योंके गुणसे बिल्कुल ही इससे यह स्पष्ट है कि चाहे कारण जो भी हो किंतु विहीन है । द्रव्यपरमाणु की भांति उनमें जड़त्व बात रहित नलीमें ऋणविद्युत् किरण धनविद्युत् तथा भ्रमकत्व दोनों ही है और इसी कारणसे किरणों कि अपेक्षा बहुत अधिक चपल होती हैं। निर्वातनलीमै तय्यार की हुई चक्र योजना को इसकी गति भी अति तीव्र होतीहै और गतिके घुमाते हैं । इसी भांति उनके अंगमें गतिविशिष्ट कारणही जितनी दूर चाहे ये जा सकते हैं। इसी शाक्ति है। यही कारण है कि उसके मार्गमें स्थित भाँति इसके विपरीत विद्युत्भारयुक्त कणोले संयोग प्लातिनमका टुकड़ा तप जाता है और जिस समय होने पर वे नष्ट भी होजाते हैं। अति वेगसे धूमता है यदि उसमें अवरोध न किया प्रो० टौनसेण्डके मतानुसार इनकी वाहकता! जाय तो उसका प्रकाश पड़ने लगता है। अथवा धूलरहित हवामें अत्यन्त स्थायी होती है क्योंकि उससे भी अधिक उच्चकोटि का किरणविसर्जन हवामें यदि धूल के कण होते हैं तो वे बरावर ! (क्ष-किरण ) होने लगता है । विद्युत्तत्वोंकी विधत्भार लेते देते रहते हैं। और कुछ अपने में भांति क्ष-किरणके इस धर्मसे कुछ निश्चित बातों एकत्रित भी करते जाते हैं। यदि हवाम धूलके का पता चलता है। विद्युत् प्रवाहके लिये कण बिलकुल नहीं होते तो वाहकशक्तिके नष्ट होनेमे (Positive) धनविद्युत्-परिमाणुओकी ही भाव- बहुत समय लगता है । इससे यह पता लगता है श्यकता होती है, क्यों कि ऋण-विद्युत्-परिमाणु कि ये चरपरमाणु बहुत ही सूक्ष्म होते हैं । जिससे चाहे कितनेभो हो उनका कुछ भी उपयोग नहीं एक दूसरे पर शायद ही आघात होता होगा। होता। किन्तु वे बरावर उत्पन्न होते रहते हैं और श्राकारमें जितनेही ये छोटे होते हैं उतने एक कभी समाप्त नहीं होते। ऋणविद्युत्कणों की दूसरेसे कम टकराते हैं । वायुके अणुकी चपलता अधिकता के कारण निर्वात नलीमें जो कुछहवा या प्रसरणशक्ति उसके परमाणुओंके आकार और शेष रहती है उसका विश्लेषण होने लगजाता है उनके स्वतन्त्र मार्गपर बहुत कुछ निर्भर रहती है। और उस विश्लेषणसे धन-विद्युत्अणु उत्पन्न होते विद्युत् विश्लेषणके जो चपल परमाणु होते हैं वे हैं। ये धन विद्युत्अणु ऋण-ध्रुव से उत्पन्न होने द्रव्यपरमाणु नहीं होते और इनका विद्युत्भार भी वाली ऋण-विद्युत्कणोंकी अधिकता होते हुए भी द्रव्य-परमाणुओंसे भिन्न होता है। द्रव्य परमाणुओं ऋण-ध्रुव की और ही अग्रसर होते हैं। अन्तमें का बोझ नष्ट हो जानेसे उसे जिसने वेगसे चाहे ! उन्हींसे जाकर टकरानेके कारण नये विद्युत्कण घुमा सकते हैं । विद्युन्मार्ग को विद्युत्शक्ति का भी उत्पन्न होते हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि उसपर परिणाम होता ही हैं। इससे स्पष्ट है कि जिस स्थान पर यह विश्लेषण हुश्रा करता है विद्युत्भार व्यपरमाणुसे अलग और अकेला भी ऋण-६ वका वही भाग प्रकाशित रहता है। रह सकता है। यह एक परमाणुसे दूसरे परमाणु जिस वेगसे यह आगे फेंके जाते हैं उससे यह तक जाते समय कुछ काल तक तो अपना स्वतन्त्र स्पष्ट होजाता है कि उनपर बहुत अधिक विद्युत्भार अस्तित्व भी रखता है । इस क्षणिक स्वतन्त्रताके होता है। इनकी भेदन-शक्ति अगाध है तथा विलक्षण ।