अथर्वण अथणी ताल्लुका ज्ञानकोष (अ) १५४ रियासत है। इसके उत्तर में धेनकानलकी रिया- कि यह गाँव बीजापुरले दो दिनके मार्गपर स्थित सत. पूरव तथा दक्षिणमें कटक जिला. तथा है, और यह व्यापारका मुख्य स्थान है (Atlas V. पश्चिममें टीनिया और धैनकानल रियालते हैं। 247)। १६७५ ई० में अंग्रेज़ यात्री झायरने इसका यहाँकी जमीन सपाट तथा उपजाऊ है। यहाँकी . हटनी ( Huttany ) नामसे उल्लेख किया है पैदावार धान है। ( East India & Persia 175)। १६७६ ई० में इस रियासत के पहले राजा श्रीकरणनीलानी-: यह गाँव मुगलसेनापति दिलावरखांके अधिकारमें यवान पाटनायक थे। पहले यह पुरीके राजाके था। उसने यह गाँव शिवाजीसे जीतकर लूटा प्रधान थे। कुछ लोगोंका मत है कि राजाने खुश था । पिता पुत्रमें विरोध हो जानेके कारण होकर इनको यह राज्य दे डाला था, किन्तु कुछ संभाजी दिलाचरखांके यहाँ आकर कुछ दिन पहले का कथन है कि राजाने अपनी बहन इनको व्याह से टिका था। दिलावरखाँ चाहता था कि वहांके दी थी। उसीके दहेज में यह राज्य भी दे दिया लोगोंको गुलाम बनाकर बेच दें किन्तु सम्भाजीने था। राज्यको जनसंख्या ४३००० है। १६०१ इसका घोर विरोध किया, किन्तु दिलावरने इनके ई० में इस रियासतमें केवल २६४३ हिन्दू थे। विरोध पर बिल्कुल ध्यान न दिया। तब सम्भाजी अत्यन्त क्रुद्ध होकर अपने पिताके पास फिर चले अथणी ताल्लुका-वम्बई प्रान्तके वेलगाँव आये। उस समय भी अंग्रेजी कारबागी कोठियों जिलेके ईशान्य स्थित एक ताल्लुका है। यहाँ से इसका बड़ा व्यापार होता था। की १६२१ ई० की जनसंख्या १२४६७८ थी। इस निज़ामने यह गाँव जीत लिया किन्तु अपने मित्र ताल्लुकेके मुख्य गाँव अथणी तथा कुडची हैं। राजा कोल्हापुरके आधीन इसको कर दिया। यहाँकी ज़मीन प्राय ऊसर तथा वृक्षहीन है। हवा इन्होंने १७३० ई० में इस गाँवको सताराके शाहू यहाँको सूखी तथा स्वास्थ्यकर है। इसके दक्षिणी छत्रपतिको दे दिया। १७६२ ई० में कॅ० मूरने भागसे कृष्णा नदी बहती है। वर्णन किया है कि दक्षिण तथा पश्चिम फाटकसे अथणी गाँव-वम्बई प्रान्तके जिला वेलगाँव शहरके रास्ते बने हैं। १८३६ ई. में निपाणीके राजा के ईशान्य में ७० मीलको दूरी पर उ० अ० १६४। निःसन्तान मर जानेके कारण यह अंग्रेजी राज्यमें व पूर्व रे०७५.७० के मध्य में यह गाँव स्थित है। मिला लिया गया (बॅ० ग०)। १९२१ ई० में यहाँकी जनसंख्या १३५३८ थी। अथमलिक-उडिसा प्रान्त की यह एक पुराना गाँव गिरकर अब बिल्कुल खंडहर होगया देशी रियासत है। इसके उत्तरमें रेगखोल रिया- है, केवल उत्तर तथा दक्षिणके फाटक अभी तक लत, दक्षिणमें महानदी और पश्चिममें सोनपुर देख पड़ते हैं, यहाँ प्रति रविवार, तथा सोमवार तथा रैराखोल है । यहाँ के पहले राजा को बाजार लगता है। चौपायोका व्यापार यहाँ प्रतापदेव थे। पुरीके राजाने उसके सातों भाइयों बहुत होता है । यहाँ १८५३ ई८ से म्युनिसिपैल्टी में से दो को मार डाला था। तदन्तर अथमलिक स्थापित है। १८८२-८३ ई० में इसकी आय में आकर वहाँ के डोम राजाको भी मार डाला १२५३०) रु. और व्यय १४०४०) रु० था। यहाँ | और राज्य अपने हस्तगत कर लिया। १८६४ ई० (Ginning)जिनिङ्गके पाँच,छःकारखाने हैं। यहाँको में अंग्रेजोंने अन्य राजाओंकी भाँति इन्हें भी राजा मुख्य पैदावार कपास ज्वार इत्यादि है। इस की सनद दी। राज्यकी आय ७१०००) है । राजा गाँवमें एक हाई स्कूल. एक अङ्गलों वरनाक्यूलर, अंग्रेजोको ४८०)रु० कर सालाना देते हैं । इमारत और प्राइमरी स्कूल हैं । विलापुरको यहाँसे मोटर बनाने की लकड़ी तथा चावलका व्यापार यहाँ जाती है। यहाँ एक टूटी फूटी भट्टीकी गढ़ी है बहुत होता है। यहाँ व्यापार के लिये बैलगाड़ी जिसमें दो बाड़े हैं। सिद्धेश्वर अमृतेश्वर ऐसे अथवा नावोंका अधिक प्रयोग होता है । दो पुराने मन्दिर तथा एक मसजिद है । से होकर यहाँ जाना पड़ता है। बंगाल नागपूर इतिहास----१६३६ ई० में एक फ्रान्सीसो यात्रो रेलवे ( Bengal Nagpur Railway) का यह मन्देलस्लोने इस नगरका ( Atheni City ) एक स्टेशन है। यहाँ की वर्षाका प्रमाण लगभग उल्लेख किया है। उसका कथन है कि यह गोवा ५०-०" होता है। यहाँ की १९११ ई० की जन- और बीजापुर के बीचमें एक बहुन बड़ा व्यापारिक संख्या ५३७६६ थी। केन्द्र था ( Harris voyages II. 129)। १६७० अथर्वण-प्राचीन कालमें अग्नि उपासक ई. मैं इङ्गलिश भूगोलवेत्ता अजिल्बीने लिखा है पुरोहितोको अथर्वन् कहते थे। आगे चल कर 1 कटक
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