प्रथम अथर्ववेद ज्ञानकोश (अ) १६४ अथर्ववेद ग्रहोंमें पैदा होने, जोडुवाँ चालक होने, दुःखप्न गाय जिस तरह अपने बछड़े पर प्रेम करती है दिखायी देने आदि आदिके लिये भी प्रायश्चित्त , उसी प्रकार श्राप भी परस्पर प्रेम बढ़ावें ॥१॥ मन्त्र हैं। अपराध, पाप, विपत्ति, दुर्दैव आदि पुत्र पिताके अनुकूल और माताके हृदयको की कल्पनाएँ इस वेदमें इतस्ततः बहुत है । यह समझनेवाला हो । स्त्री अपने पतिसे मधुर (मीठी) माना गया है कि व्याधि (कष्ट ) आपत्ति(विपत्ति) बाणी बोले ॥२॥ अपराध (गुनाह) और पाप इत्यादि जितनी बुरी भाई भाईसे द्वेष (बैर ) न करे; वैसे ही वहने वाते हैं भूत पिशाचोंसे उत्पन्न होती हैं। यह भी ; भी आपसमें न लड़ें। ये आपसमै प्रेमसे सम्मा- समझा जाता था कि रोगी या पागल मनुष्यको षण करें और उदार चित्तसे व्यवहार करें ॥३॥ तरह पातकी मनुष्य पर भी भूतकी सवारी हो प्रणयमंत्र-घरमें सुख और शांति कायम रखने जाती है। यही नहीं ये रोग उत्पन्न करनेवाले ! वाले ये मंत्र पति-पत्नीमें प्रेम और एक-भाव मनुष्य-द्वेषी भूतपिशाच असगुन और अपघात उत्पन्न करनेमें उपयोगी हो सकते हैं। परन्तु (चोट वगैरह) श्रादिके भी कारण होते हैं। अथर्ववेदमें विवाह और प्रेमसे सम्बंध रखनेवाले इसका उदाहरण अथर्ववेदके १०३ कांडके घरे मंत्रोंके भिन्न मुक्त हैं । ये सक्त बहुत हैं । इस वेद सूक्तमें मिलेगा। इसकी २५ ऋचाओमें एक मंत्र के कौशिक सूत्र में 'स्त्रीकर्म' नामक मंत्र प्रयोग और ( ताबीज ) की खूब प्रशंसाकी गयी है। उसके । काममंत्र है। इन मंत्रोंके दो विभाग हैं। सामर्थ्य की बहुत प्रशंसाकी गयी है। सब प्रकार विभागमें विवाह और सन्तानोत्पत्तिके सम्बंध के विघ्न, दुष्ट मंत्रोंका प्रयोग, बुरे स्थन, असगुन, सात्विक और शांत मंत्र हैं। ये मंत्र कुमारियोंको माँ, वाप, भाई, बहन द्वारा तथा स्वयं किये हुए ! पति मिलनेमें और युवकोंको गृहिणी प्राप्त होनेमें पापोंका निरसन करने की क्षमता उस मंत्रमें बताई सहायक होते हैं। ये मंत्र पति-पत्नी और नव- विवाहित जोडेका कल्याण साधन करनेवाले हैं शांति-सूक्त-उस समय यह माना जाता था। इनके कारण शीघ्र गर्भधारण होता है, गर्भवती कि दुष्ट दैत्य अथवा द्वेष करनेवाले मांत्रिक ही स्वास्थ लाभ करती है, गर्भस्थ बालककी रक्षा घरमै कलह ( फूट) पैदा करते हैं। अथववेदमें होती है सुन्दर बालक प्राप्त होता है; और इसी ऐसे मंत्र हैं जो घरमें सुख और शांति विराजनेके प्रकार के अनेक वैवाहिक सुख प्राप्त होते हैं। समस्त लिये कहे जाते हैं। इन मंत्रोंको प्रायश्चित्त मन्त्रों चौदहवे कांडमै यही विषय है। मालूम होताहै और पौष्टिक मन्त्रों के मध्यमें स्थान देना चाहिये। ऋग्वेदमें लिखित विवाहसम्बन्धी मन्त्रीका यह । इन मन्त्रों में केवल ऐसे ही मन्त्र नहीं हैं जिनसे परिवर्द्धित संस्करण है। अव द्वितीय विभागको घरमें सुख ही हो, किन्तु ऐसे भी मन्त्र हैं जिनके बल लीजिये । इसकी संख्या बहुत है । विवाहके पश्चात् से अपने अधिकारी (अफसर) को प्रसन्न किया यदि पति-पत्निमें विग्रह हुआ हो, अथवा प्रेमी- जा सकता है; इच्छा होनेपर समाजमें अपनी प्रेमिकाके प्रेम सम्बन्धी षड्यन्त्र रचे जा रहे हो प्रतिष्ठा बढ़ाई जा सकती है; अदालतमें अपने पक्ष | तो उनकी सफलताके सम्बन्ध मन्त्र हैं। पतिके की बातोंको ठिकानेसे समझाकर न्यायका पलड़ा शक्की (सन्देह युक्त ) मिजाजको दूर करने, वद- अपनी ओर झुकाया जा सकता है; या अनेक दूसरे चलन स्त्रीको सुधार कर पति-सेवामे तत्पर करने महत्वके काम किये जा सकते हैं। इस सम्बंध : अथवा अपनी प्रेमिकासे भेंट करनेके लिये उसके एक उत्तम सूत अथर्व संहिताके ३रे काण्डका (प्रेमिकाके) सगे सम्बन्धियोंको अपने बसमें ३०वा सक्क है। लाने के मन्त्र हैं। यह ठीक है कि ये मन्त्र विशेष सहृदयं सामनस्यमविद्वेषं कृणोमि वः। कष्ट उत्पन्न करनेवाले नहीं हैं। इच्छाके विरुद्ध श्रन्यो अन्यमभिहर्यत वत्संजातमिवान्या ॥१॥ किसी स्त्री या पुरुषको अपने अनुकूल या औरभी अनुव्रतः वितुः पुत्रो मात्रा भवतु संमनाः। ... ऐसेही कुकमौके लिये साधनभूत कुछ अधिक जाया पत्ये मधुमती वाचं वदतु शन्तिवाम् ॥२॥ उन मन्त्र हैं। दुनियाके अन्यान्य स्थानोंकी तरह माभ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा। प्राचीन समयमें इस देशमेभी यह समझा जाता सम्यञ्चः सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया ॥३॥ था कि किसी स्त्री या पुरुषको उसकी प्रतिमा (मूर्ति) बनाकर उसको मन्त्र द्वारा अपने कब्जेमें मैं आपको द्वेषसे मुक्त, समान चित्तवृत्ति रखा जा सकता है या नुकसान पहुँचाया जा धारण करनेवाले और प्रेमसे पूर्ण बनाता हूँ। सकता है। कोई पुरुष यदि किसी स्त्रीको अपने । अथर्व० ३. ३०.
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