पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२३०

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अधिकमास ज्ञानकोश (अ) २०७ अधिकमास मासका दूसरा पक्ष होता है और कृष्णपक्ष आने- अधिक मास द्वारा की हुई विष्णु भगवान की वाले महीनेका पहला पक्ष होता है। इस रीतिसे प्रार्थना दी है। पाँचये अध्यायमै विष्णु भगवान उस समय दोनों पूर्णिमांत महीनोंमें संक्रमण होने का अधिक मासके साथ गोलोकमै जानेका वर्णन के कारण उनका कोई भी वस्तुतः अधिक मास और अधिक मास के लिये (विष्णुभगवान द्वारा) नहीं हो सकता। अमांत मानके अनुसार भास | श्रीकृष्ण की प्रार्थना है। छठे अध्यायमें श्रीकृष्ण संज्ञा और अधिक मास दोनोंको पूर्णिमांत मानपर द्वारा अधिक-मासको वरदानप्राप्तिका वर्णन है। लादनेके कारण अधिक मासका नामकरण करनेमें अध्याय ७ से १२ तक का वर्णन यों है-श्रीकृष्ण भी बहुत अव्यवस्था होती है। मान लीजिये कि पांडवोंको उनकी विपत्ति का कारण बतलाते हुए अमांत-मानके अनुसार वैशाख अधिक मास आता | कहते हैं कि द्रोपदो पिछले जन्ममें मेधावी नामक है । उसी समय पूर्णिमांत मानके अनुसार वैशाख ! ब्राह्मण की लड़की थी। मावापके मरने पर महीनेका कृष्णपक्ष अर्थात् प्रथम पन्द्रह दिन गुजर अनाथ हो गयी । ऐसो अवस्था में उसे दुर्वासा ही चुके होते हैं । श्रमांत मानके अनुसार पूर्णिमांत | ऋषिका दर्शन हुआ ! दुर्वासा ऋषिने उसे मानमें अधिक मासका नाम वैशाख रखा जाय तो पुरुषोत्तम मासका महात्म बतलाया। दोपदी के शुद्ध वैशास्त्र महीनेका कृष्णपक्ष पहले, उसके यह पूछनेपर कि और महीनों की अपेक्षा पुरुषोत्तम पश्चात् अधिक वैशाख और तब शुद्ध वैशाखका मासको क्यों इतना महत्व दिया जाय, ऋषि कृष्णपक्ष--इस तरहका एक विचित्रक्रम दिखाया | क्रोधित होगए। उन्होंने उसे श्राप तो नहीं दिया देगा । इस अव्ववस्थाको दूर करनेके लिये ऐसे पर यह कहा कि जिस अवस्थामे तूने पुरुषोत्तम मौकोपर पहले और दूसरे पक्षोको मिलाकर प्रथम मासका अनादर किया है उस अवस्थामें तुझे वैशाख और तीसरे तथा चौथे पक्षको मिलाकर आगे चलकर दुख भोगना पड़ेगा। इसपर द्रौपदीने द्वितीय वैशाख मानते और लिखते हैं । शिवजी की आराधना प्रारंभ की। शंकर प्रसन्न अधिकमास महात्म-वृहन्नारदीय पुराण और हुए और बरदान मांगने को कहा। बार मांगते पद्म पुराणमें 'पुरुषोत्तम मास महात्म्य और मल समय द्रौपदीने 'पति' शब्द पाँच वर उच्चारण मास महात्म्यमें अधिक मासके महत्वका वर्णन कर पति' देने की प्रर्थनाकी। इसलिये भगवान किया हुआ है। पहलेमें ३१ और दूसरेमें १६ शकर ने वर दिया कि अगले जन्ममें तेरे पाँच पति अध्याय हैं । ये महात्म्य वृत्तिवान ब्राह्मणों के अनु- होंगे। अगले जन्ममें वह यज्ञकुंडसे द्रौपदीके कूल हैं। इनमें बतलाया गया है कि अधिकमासमें रूपमै उप्तन्न हुई और पांडवोंको पनि हुई। पुरषोमत्त किन किन वृत्तोंका पालन करना चाहिये कौन मासका अनादर करनेके करण उसे दुश्शासन द्वारा कौनसे दान देने चाहिये, व्रतोंके उद्यापन किस पीड़ा और पश्चात् वनवास प्राप्त हुआ । ( अ-१३ तरह करना चाहिये किस व्रतोसे कैसी फल प्राप्ति से १६) यहाँ से दृढ़धन्वा नामक राजाकी कथा होती है, इत्यादि इत्यादि। इनमें अधिक मास का आरम्भ होता है। एकवार वह शिकार करने महात्म्य श्रवण करनेकी फल श्रुति भी सम्मिलित गया। जंगलमें किसी तोते के मुंहसे एक श्लोक है। 'मलमास महात्म्यमें तो व्रतों और दानोंपर सुनकर वह चिंताशील हुआ। इसी मौके पर अधिक जोर दिया गया है । वृहन्नारदीय पुराणमें वाल्मीकि मुनि वहाँ श्राकर उसे उसकी चिंताका पुरुषोत्तममोस महात्म्यमें क्या बतलाया है इसे | कारण समझाते हुए उसके पूर्वजन्मको कथा उसे दिखानेके लिये हम संक्षेपमें थोड़ासा वर्णन देते हैं। सुनाने लगे कि तुम पहले जन्ममें द्रविड़ देशमे रहते पहले अध्यायमें बतलाया है कि इस महात्म्य थे। तुम्हारा नाम सुदेव था। तुमने सन्तान के को पहले किसने किससे कहा था और आगे वह लिये तप आरम्भ किया। यद्यपि तुम्हारे भाग्यमें किस परंपरा से कहा जाता था। इस अध्याय पुत्र नहीं था, परन्तु गरुड़ की प्रार्थना पर विष्णु का नाम 'शुकागमन्न' है। आगे चलकर दूसरे भगवान ने एक पुत्र दिया। देवल ऋषिने तुम्हे अध्यायमें पुरुषोत्तम मासके सम्बन्ध विष्णुभग- ! बतलाया कि बारहवे वर्ष यह लड़का डूबकर मर वान और नारदजी का संवाद दिया है। अधिक जायगा । जब बह निश्चत समयपर मर गया तब मास व्रतादिकके लिये आयोग्य समझा जानेके तुम और तुम्हारी स्त्री विलाप करने लगी। तव काणर अपनो न्यूनता को पूर्ण कराने की भावना श्री हरिने उस बच्चे को जिला दिया और उसे से विष्णु भगवान के पास प्रार्थना करने जाता | दीर्घायु दो। श्रीहरीने भी तुम्हें (सुदेव को ) है-यही तीसरे अध्याय में है । चौथे अध्यायमें पूर्व वृत्तांत बतलाया। पुराने ज़माने में धनु नामके