पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२३१

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होगा। अधिकमास ज्ञानकोश (अ) २०८ अनकापल्ली एक ऋषि थे! उन्होंने अमरपुत्र होनेके लिये अवस्थामें वह पुरुषोत्तम मासके कृष्णपक्षकी दशमी कठिन तप किया। उसे अमर पुत्र तो नहीं प्राप्त को एक कुन्डमें गिरपड़ा और पांचवे दिन मर हुश्रा, पर भगवानने उससे कहा कि यह जो सामने गया । इस कारण अनायासही व्रतका श्राचरण पहाड़ है वह जब तक रहेगा तब तक तेग पुत्र भी हो जानेसे उसे दिव्य देह प्राप्त हुई और वैकुंठधाम जीवित रहेगा। इस बालकने महिषि ऋषि की में चला गया। उन्नीसवें अध्यायमै पुरुषोत्तम शालिग्राम की मूर्तिको कुएँ में फेंक दिया । ऋषिने मासके हर एक दिनका श्रान्हिक कृत्य बतलाया लड़केको श्राप दिया कि तू मर जायगा। किन्तु है। तीसवै अध्यायमें पतिव्रता धर्मका निरूपण जब वह नहीं मरा तय ऋषिने उसके न मरने का किया गया गया है। उसका अधिक मास महात्म कारण तपोबल से ज्ञात कर लिया। उन्होंने से वस्तुतः कोई लगाव नहीं है। अन्तिम अर्थात् हजारों महिषि (भैसे ) उत्तन्न किये जिन्होंने उस इकतीसवै अध्यायमै पुरुषोत्तममासमहात्म सुनने पर्वतको नष्ट कर डाला। मुनिपुत्र भी तत्काल के फलका वर्णन है। ही मर गया । धनुऋषिने बालकके साथ अधिरथ- -चम्पाके आसपास रहने वाला चिता में प्रवेश किया। इस प्रकार पूर्व वृतान्त एक सूत । यह धृतराष्ट्रका मित्र था। ( महाभारत कहकर श्रीहरिने कहा कितू अगले जन्ममें दृढ़धन्वा ३,३०६,१७१५३ ) इसकी स्त्रीका नाम राधा था। नामक राजा होगा और विणुको भूल जायगा। इसी दंपतिके द्वारा कर्णका पालन पोषण किया तब यही तेरा पुत्र शुक (तोता) के स्वरूपमें गया। ऐसा कहा जाता है कि यह अंग देशका सामने तुझे याद दिलावेगा और वैराग्य प्राप्त राजा था, अधिरथने कर्णका वसुषेण नाम रखकर ( अध्याय २१ ) पुरुषोत्तम मास | उसको हस्तिनापुरमै द्रोणाचार्यके पास अस्रविद्या महात्म्य सुनने के कारण तुझे पुत्र प्राप्त सीखने के लिये भेजा (म. भा० ३.३०८) इसी होगा। (०२१ ) इसमें पूजनविधि वर्णित है। कारणसे महाविख्यात् कर्णके राधेय, सूतपुत्र, अध्याय २२ में बत नियम श्रादि का वर्णन है। सूत इत्यादिनाम हैं। अध्याय २३ और २४ में पुरुषोत्तम मासमें दीपदान अधेवाड़-भावनगरके दक्षिणमे लगभग करने का वर्णन है। उसका फल और महत्व तीन मील पर भालेश्वरी नदीके उत्तर तीरपर यह दिखलाने के लिये अगस्त्य ऋषिद्वारा चित्रबाहु गाँव बसा हुआ यहाँकी जनसंख्या लगभग राजाको उसके पूर्वजन्मका वृतांत सुनाने की कथा ५०० है। यहाँ के जाजदियाका हनुमानजीका वर्णित है। पूर्वजन्ममें राजा चमत्कारपुरीमै मणि मन्दिर तथा गुरुशिष्यकी पादुका दर्शनीय तथा श्रीवके नामसे रहता था। वह परम नास्तिक और महत्वका स्थान हैं । यह स्थान सोमनाथके यात्रा जीवहिंसा परायण शुद्ध था। इस शूद्र मणिग्रीव ने का एक क्षेत्र है। ठाकुर रामदासने अपने पुत्र उग्रदेव नामक ब्राह्मण की एक बार सेवा की। साधुलजीको यह गाँव दिया था। यह तबसे उसी उनदेवने उसे पुरुषोत्तम मास में दीपदान करने के वंशजोंके पास है। (वाँ, ग. =) का उपदेश दिया। उक्त दीपदान करनेके कारण ही अन-यह लोअर वर्माके क्योकपा जिलेका मणिनीय अगले जन्ममें चित्रबाहु राजा हुआ। मुख्य नगर है। यह उ० अ० १६°१६ से २००४ पचीसवें अध्यायमें वाल्मीकि मुनिने दृढ़धन्वा और पू० रे० ६३°४५ से १४२६' में स्थित है। राजाको उद्यापन विधि बतलाया है। छब्बीसवें इसका क्षेत्रफल १८६१ वर्ग मील है। सं १६०१ में अध्यायमें गृहीत नियमोंके त्यागके सम्बन्धमे इसमें ३१३ देहात थे। जनसंख्या करीब तीस विवेचन किया गया है। इस तरह वाल्मीकि हजार है। इस भागमे जंगल बहुत है। सं० १६०३-४ मुनिके कथा कहने पर दृढ़धन्वा राजगद्दी पर | में केवल ३६ वर्ग मीलमे खेतीकी जाती थी। यह अपने पुत्रको बैठाकर तप करने चला गया। नन नदीपर बसा है। (इं० ग०५) आगे अपनी स्त्री समेत भगवत्वरणमें लीन हो अनकापल्ली-यह मद्रास प्रान्तके विज- गया। सताईसवें अध्यायके अवशेष भाग गापट्टम जिलेकी नैऋत्य दिशाको एक तहसील चित्र शर्मा नामक एक कृपण ब्राह्मण की कथा है। है। यह उ० अ० १७°२६ से १७°५१ और उसने पुण्यकार्य कुछ भी नहीं किया। वह सदा पू० रे ८२°५७' से ३०१५' में स्थित है। चोरी और पापधर्ममें प्रवत्त रहता था। इस इसका क्षेत्रफल २६७ वर्गमील है। यहाँको लिये मरने पर उसको पहले प्रेतयोनि प्राप्त हुई जनसंख्या लगभग एकलाख पैंसठ हजार है। और पश्चात् वह बन्दर बनाया गया। इस इस तहसीलमें अनकापल्ली गाँव और १४३ 1