पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनिरुद्ध ज्ञानकोश (अ) २३४ अनौवेसेन्ट और लीडिया प्रान्तमें इसे "अभिस टाऊरो इसका ध्यान दरिद्र और रोगियोकी सेवाकी ओर पोलस' समझते हैं। रोम देशमे "मंग्नामेटर" ही अधिक आकृष्ठ हुआ था। उस साल सिस्थे Magna Mater) ( महातमा ) और मिश्र के अस्पताल और गिरजा घरमें इसने बड़े परिश्रम देवतासे इसका सम्बन्ध बताते हैं । से काम किया था। आगे चलकर पूर्वीय लन्दन अनिरुद्ध-(१) यह श्रीकृष्ण का पौत्र और की धनहीन युवतियों के लिये भी इसकी निरन्तर प्रद्युम्नका लड़का था। राजा रुक्मिएकी कन्या सेवा विशेष प्रसंशनीय है। फेबियन सोसाइटी इसकी स्त्री थी। इसके बिवाहके समय बड़ी (Fabian Society) से भी इसका घनिष्ठ सम्बन्ध भारी लड़ाई हुई थी। इसको रोचना नामक स्त्री था। उसकी स्पष्टवादिता तथा सचाईके कारण से ब्रज नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। उसके बहुत से शत्रु होगये थे। इसके जीवनका वाणासुरकी कन्या उषा इसकी दूसरी स्त्री प्रारम्भिक भाग ( अर्थात् १८४१ ई० तक), अपनी थी। इसके विवाहमें वाणासुरका यादवोंसे श्रात्माकी स्वतन्त्रता तथा ज्ञान प्राप्त करने में ही घोर युद्ध हुआ था। इसने व्यतीत किया था। उषाहरणकी कथा मनोरंजक है। नाटक, भारतमें आमन-जब यह विलायतमें थी सिनेमामें भी उषाहरण दिखाया जाता है। तभी से भारत के लिये इसके हृदय में विशेष श्रद्धा राजा रविवर्माका 'उषा स्वप्न' चित्र बहुत ही और भक्ति थी। स० १८६३ ई० के १६वीं नवम्बर मनमोदक है। इस कथानकका नायक अनि. को इसने भारतमें पदार्पण किया था । इङ्गलैण्ड में रुद्ध है, तथापि श्रोता लोगोंके मनमें उसके | जन्म होते हुए भी भारतको ही यह अपनी मातृ- पराक्रम अथवा दूसरे गुणोंका प्रभाव नहीं पड़ता भूमि संमझती थी। प्राचीन हिन्दु सभ्यताने इस ( भाग, दश ६१, महा० अदि० २०१, महा० के हृदय पर गहरी छाप लगा दी थी। एक बार सभा०६०) एक मित्रने इससे पूछा कि तुम अपने देश कब (२) इस विषयमें इतना ही पता लगता है | लौटकर जानोगी। इस प्रश्न पर उत्तेजित होकर किवि० स० १५२० (शाक १४१५) में लिखे हुए वह कहने लगी कि भारत ही मेरा देश है। सन् शतानन्दकृत 'भास्वती करण' के टीकाकार तथा १८९३ से १८४७ई. तक यह घूम धूमकरं हिन्दुओं भावनशर्माके यह पुत्र 1 . १४६४ ई० में इसका की प्राचीन सभ्यता तथा ऐश्वर्य पर भाषण देती जन्म हुअा था। रही। दक्षिण भारतके पढ़े लिखे लोगोंमें इसने अनीबेसेन्ट-डाक्टर-(एनीवेसेन्ट)-इस जागृति उत्पन्न करदी श्रीर इसके उच्च विचार, असाधारण प्रतिभाकी महिलाका जन्म स०१८४७ विद्वत्ता तथा असीम प्रतिभाके कारण यह विशेष ई० के अक्तूबर मासमें हुश्ना था । यद्यपि इस श्रद्धासे देखी जाने लगी। अन्य विद्वानोस सहा- अंग्रेज महिलाका जन्म तथा प्रारम्भिक जीवन यता लेकर इंसने सनातन-धर्म सम्बन्धी अनेक कट्टर तथा संकुचित ईसाई वायुमण्डलमें व्यतीत पुस्तके प्रकाशित की ! भगवत गीता श्रीकृष्णके हुओ था किन्तु यह स्वयं बड़े उदार विचारको उपदेशों पर इसके बहुतसे व्याख्यान हुए। थी, और धार्मिक बन्धनोंसे बिल्कुल मुक्त थी। सामाजिक तथा राजनैतिक क्षेत्रमें पदार्पण--इस प्रारम्भमें इसके विचार कुछ नास्तिकोंके से थे। | विदेशो महिलाने भारतके ऐसे अनेक उपकार यद्यपि इसने यह तो कभी भी कहने का साहस किये हैं जिससे अाधुनिक इतिहासमें इसका नाम नहीं किया कि ईश्वरका अस्तित्व है ही नहीं तो विशेष उल्लेखनीय होगया है । भारतीय संस्कृति भी कुछ समय तक इसका कथन था कि ईश्वरके को जीवित रखनेके उद्देश्यसे इसने सन् १८६ई. अस्तित्वका कोई भी प्रमाण मैं नहीं देखती अतः में काशीकी पवित्र भूमिमें हिन्दू कालिजकी स्था. मेरा उस पर विश्वास भी नहीं है। उसका वैवा- पना की। उस समय भारतमें केवल यही एक हिक जीवन अत्यन्त दुःखपूर्ण था। एक बार तो ऐसी संस्था थी जो संकुचित व्यक्तित्वसे बिल्कुल उसने विषपान तक का विचार किया था किन्तु मुक्त थी। उसके इस महान उद्देश्यकी पूर्तिमें आन्तरिक प्रेरणासे शीघ्र ही अपना विचार बदल योरप तथा अमेरिका तक से मनुष्योंने सहायता डाला और उत्साहके साथ सब दुख सहनेके दी थी। इसी हिन्दू कालिजसे आगे चलकर भारत लिये कमर कसली। की सबसे प्रसिद्ध संस्था काशीके 'हिन्दू विश्व- सामाजिक सेवा-स. १८७२ ई० से हो समाज विद्यालय का प्रादुभाव हुआ। इस विद्यालयकी सुधारमें यह तल्लीन हामई थी। पहले पहल ओरसे यह 'डाक्टर को पदवीसे विभूषित की गई।