पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२७९

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! अपच ज्ञानकोश (अ) २५६ अपच दूसरी महत्वपूर्ण बात जो ध्यानमै रखने योग्य अति शारीरिक परिश्रमसे शरीरमै थकावट है वह यह है कि यहाँके स्थानीय न्यायालय बहुत आकर शिथिल हो जाता है, उसी भाँति भूखे से व्यक्तियों के सम्बन्धमें 'अपकृत्य' का फैसला प्यासे बहुत परिश्रम करके भोजन करनेसे भी नहीं दे सकते। उनको स्वयं ही यह अधिकार अजीर्ण हो जाता प्राप्त नहीं है। एक राजाके विरुद्ध दूसरे राजाके लक्षण-भोजनके थोड़ी देर पश्चात् पेट फूलने कृत्योंका निर्णय करनेका अधिकार यहाँ की लगता है जिससे मनुष्यको बेचैनी होने लगती है। दीवानी अदालतोको नहीं है। वृटिश सरकार कभी कभी पेटमें पीड़ा भी होने लगती है । रात्रि का किसी राज्य विशेषके साथ जो कृत्य होता है, के भोजनके पश्चात् ऐसे रोगीको व्यवस्थित रूप उसपर भी यहाँके न्यायालय विचार नहीं कर से निद्रा नहीं पाती, केवल तंद्रा रहती है। थोड़ी सकते। यदि किसी राजाको गवर्नर-जनरल इन थोड़ी देरमै नींद खुलती रहती है, बराबर, स्वप्न कौसिलने पदच्युत कर दिया हो तो स्थानीय देखा करता है । नींद खुलने पर मुख सूखा रहता न्यायालय उसपर विचार करनेका अधिकार नहीं है। होंठ पर पपड़ी जमी रहती है। मन्द मन्द रखते। गवर्नर-जनरल, गवर्नर, तथा कौन्सिल शिरमें पीडाका अनुभव करता है। हृदयकी गति और असेम्बलीके सदस्यों के विरुद्ध भी, उन कृत्यों अनियमित रहती है। प्रातःकाल सोकर उठने के लिये जो उन्होंने उस पदकी हैसियतसे किये पर भी आलस्य बना रहता है, मुखका स्वाद हो, विचार करनेका अधिकार यहाँके न्यायालयों बिगड़ा रहता है। कभी वमनकी प्रवृत्ति होती को नहीं है। है जिसमें खट्टा पित्त तथा खाया हुश्रा अन्न निक- [ मानहानि, वायु तथा प्रकाश, ग्रंथकर्तत्व (Copy: लता है। कभी कभी मनुष्यको इससे दस्त आने right ) इत्यादि अपकृत्योंके विशेष उल्लेखके लिये इन्हीं लगते हैं। शब्दों पर लिखे हुए लेख देखिये । ] उपचार-यदि अपचके लक्षण सदा ही वर्तमान अपच यह रोग पाचनशक्तिसे अधिक अन्न रहें तो समझना चाहिये कि रोगीको मन्दाग्नि हो पेट में पहुँचनेसे उत्पन्न होता है। प्रत्येक मनुष्यकी | गयी है। श्रारम्भमें अपच पर ध्यान न देने ही पाचनशक्ति, स्वास्थ्य, स्वभाव तथा प्रकृति भिन्न से यह रोग उत्पन्न हो जाता । इसका मुख्य भिन्न होती है। जो अन्न और जिस परिमाणमें | कारण है श्राजकलका अनियमित नागरिक जीवन एकको अपच कर सकता है, दूसरेको उससे और अनियमित आहार. विहार, शोक, चिन्ता, त्रास । उतने ही से कोई भी हानि नहीं हो सकती, किन्तु तथा नैसर्गिक नियमोंका उल्लंघन ही इसका मुख्य फिर भी वहुतसे ऐसे पदार्थ हैं जो प्रत्येक मनुष्य कारण हो रहा है। की पाचनशक्तिको शिथिल करते हैं, बहुतसे ऐसे प्रथम तो यह निश्चय कर लेना आवश्यक है नैसर्गिक नियम हैं जिनको उलंघन करनेसे पाचन-कि अपचके अतिरिक्त किसी और भी रोगका शक्ति हीन होती जाती है जो मनुष्य खभावतः समावेश तो नहीं है। तदनन्तर यह देखना बड़े स्वस्थ तथा हृष्टपुष्ट होते हैं उनको तो इसका चाहिये कि रोगीने क्या खाया पिया है। केवल प्रभाव बहुरा धीरे धीरे पड़ता है, किन्तु होता | साधारण अपच तो भोजन न करने ही से स्वाभा- अवश्य है। और यदि निरन्तर ही इस ओर विक रीतिसे ही अच्छा हो जाता है, किन्तु यदि उपेक्षा करते रहते हैं तो अन्तमें वे भी अपचसे | रोगीको पेटमें अधिक पीड़ा हो, चित्त घबराता पीड़ित हो जाते हैं। किन्तु जो मनुष्य स्वभावतः | हो तो ऐसे उपाय करने चाहिये जिससे रोगीको ही कमजोर होते हैं, उनको तनिक भी असाव वमन हो जावे। गरम जलमें नमक डालकर पीने धानीसे हानि उठानी पड़ती है। अधिक चटपटे | से सरलता पूर्वक वमन हो जाता है। अधिक मसालेदार तथा दाहोत्पादक भोजन करते रहने प्यास लगने पर वर्फके टुकड़े देना चाहिये । से धीरे धीरे पाचनशक्ति शिथिल पड़ती जाती है। जब तक अपचके सब लक्षण शान्त न हो जावे आमाशयकी क्रिया ठीक न होने ही से अपच हो| भोजन कदापि न करना चाहिये। बिना श्राव- जाता है। अधिक भोजन, बर्फ, चाय, काफी, श्यता हुए ही चूरन इत्यादि का सेवन न करना मद्य इत्यादिका अत्याधिक सेवन इस रोगके चाहिये। मुख्य कारण हैं। अपच होने पर खाया हुश्रा आयुर्वैदिक ज्ञान- बाबरके हस्त लिखित *थों अन्न नियमित समय में पचता नहीं है और पेटमें | में ( २५० ) जठराग्निके चार भेद कहे गये हैं -- भारीपन मालूम हुआ करता है। जिस भाँति । (१) मन्द, (२) तीक्ष्ण, (३) विषम तथा (४)