पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२८३

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अपस्मार ज्ञानकोश (अ) २६० अपस्मार अतिमैथुन, सुरासेवन इत्यादिसे इसका प्रादुर्भाव | का स्मरण होने लगता है। तब वह, मुझे श्रय हो सकता है। अत्यन्त भय, निरन्तर मानसिक जरा चक्कर पा रहा है अथवा, मेरा सिर दर्द कर चिन्ता, सिर में गहरी चोट लगना, विषम ज्वर | रहा है इसलिये मैं जरा लेट जाता हूँ, यह कहकर दांतोंमें कीड़ी लग जाना इत्यादि भी इस रोगका | दुसरी ओर चला जाता है। अथवा पहले जो कभी-कभी कारण होता है। बहुधा पहले पहल कुछ करता हो वही फिर करना प्रारंभ कर देता इस रोगका प्रारम्भ रात्रिमें ही होता है। जब है। कभी-कभी इन रोगियोंको केवल चक्कर यह रोग भयंकर रूप धारण कर लेता है तो इसमें | आना या एकदो दौरेका आकर हाथ पैर हिलाना दौरे और वेहोशी दोनों ही होते हैं। पहले तो ! अथवा मूर्छावस्था प्राप्त होना आदि कष्टदायक मनुष्य हाथ पैर पर करता है तथा अनेक ऐसे ही लक्षण होने लगते हैं, इनमेसे कुछ चिह्न और उन्मादावस्थाके से कृत्य करता है। अन्तभै वह लक्षण महापस्मारकी सूचना चिह्नोंके समान ही वेहोश हो जाता है। होते हैं। इस रोगके दो भेद कर सकते हैं, जिनका अम्बापस्मार स्थिति-विशेषतः उक्त भेदी जिस वर्णन नीचे क्रमशः दिया जाता है- तरहके हाथ पैरों के पटकनेका वर्णन किया गया सूचना-इसके अनेक भेद होते हैं। कभी-कभी है वह खतम होने पर यह स्थिति प्राप्त होती है हाथ, पैर, मुख सुन्न पड़ जाता है, दृष्टिभ्रम अथवा इस स्थितिसे मानसिक अवस्थामै बिलक्षण फर्क आंखोंके सामने जुगनु चमकने लगते हैं, अनेक पड़ जाता है। कुछ दिन तक उसे गूगी अाती रंग दिखाई देते हैं, चक्कर अथवा दम घुटने लगता है अथवा वह पागल सा हो जाता है। कभी कभी है, एकाएक पसीना छूटने लगता है या जाड़ा अज्ञान-वश वह कुछ ऐसा कर्म कर बैठता है मालूम होने लगता है, चित्तमें असावधानी व्याप्त | जिनका उसे बादमे कोई भी स्मरण नहीं रहता। हो जाती है। वह इधर उधर दौड़ता है तथा जो कोई उसे मिले बेहोशी-इसमें रोगी चाहे कोई भी कार्य उसे हो चपत लगाना शुरु करता है; स्त्री रोगीतो करता रहे, एकाएक तवियत घबराकर वह शीघ्र | अपने बच्चे तकको भी मार डालती है; इस तरह बेहोश हो जाता है, हाथ पैरमें ऐंठन होती है, के रोगी चौर्यकर्म भी करने में नहीं हिचकते। दांत बैठ जाते हैं, आँखें पथराई हुई देख पड़ती | एक समय एक न्यायाधीशने ऐसी स्थितिमे भरी है, मैं हसे फेन तथा लार चूआ करती है, चेहरा हुई अदालतमें एक कोनेमें वैठ कर पेशाब किया स्याह हो जाता है, नथुने फूल जाते हैं । मल मूत्र | था। इस मानसिक स्थितिका ज्ञान बैद्य, डाक्टर ऐसी ही अज्ञान अवस्थामें हो जाता तथा चकोलोको अवश्य ही होना चाहिये। लोग इस रोगमें थोड़ी देर तक रोगी हाथ पैर पट- यह नहीं जानते कि उस मनुष्यकी रोगके कारण कता है, और कभी-कभी तो रोगीके शरीरको ही ऐसी मानसिक स्थिति होती है। इस कारण इससे बड़ी हानि पहुँचती है। कभी-कभो चोट संभव है कि उस पर जानबूज कर मारपीट करने तक लग जाती है। इस सतत व्यर्थक परिश्रमसे का अथवा खून करने का अभियोग साबित हो होशमें आने के पश्चात् रोगो बड़ा थकित सा देख जाय। कभी इस रोगके साथ पागलपन, अति- पड़ता है। राग, भ्रम और भास होता है। कभी लड़के, लघु अपस्मार-एक दम बेहोशी प्राप्त होनेके लड़कियाँ तथा स्त्रियोको पहले इस प्रकारका अतिरिक्त अधिकतर रोगियोंको इस भेदमे कुछ | अपस्मार होकर पश्चात् उसका उन्मादवायुमें भी नहीं होता। वोलते ही बोलते एकदम उसकी रुपान्तर हो जाता है। कभी कभी ये दोनों भेद नजर स्थिर हो जाती है और कनीनिकाएँ विस्तृत | एक दूसरे में मिश्र होते हैं; याने रोगीको प्रथम होती हैं, रोगी कुछ न कुछ निरर्थक बड़बड़ाने लघु अपस्मार होकर फिर बड़े पनमें महापस्मार लगता है, और वेसुध हो जाता है। उसके पश्चात् होता है। कभी केवल सूचनावस्था ही रोगीको अपने चारों ओर क्या हुआ था इसका उसे कुछ होती है, परन्तु ऐसा प्रायः कमही होता है। भी ज्ञान नहीं रहता। यदि रोगी भोजन करता इसके रोगी की अवस्था क्रमशः बदलती हो तो एकाएक थालीमै या कटोरी में अपनी उँग- रहती है। पहले पहल तो दौरे महीनों तक भी लिया घुसड़ने लगता है और कुछ सेकंड तक नहीं आते, किन्तु ज्यों ज्यों रोग बढ़ता जाता है, बेसुध रहता है। फिर पूर्व स्थिति प्राप्त होते | इसका दौरा भी जल्दी जल्दी आने लगता है। ही अनुभवसे उसे अपनी गलतिये तथा विस्मृति- | कमी कभी तो प्रतिदिन अथवा दिनमें कई बार !