पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२९५

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अपुष्प वनस्पति ज्ञानकोश (अ) २७२ अपुष्प बनस्पति इसमें विशेषता दिखाई पड़नेवाली बात यह है कि ata) से हुई होगी। इन वनस्पतियोंके. शरीरो- इसके सिरेके पास वर्धमान अन दिख ई पडना की रचना हरी वनस्पतियोंकी अपेक्षा किंचित् है। इस वर्धमान अग्रके पास एक टेंगुरीके उच्चकोटिकी होती है। अपवादात्मक कुछ बन- समान फूलता है और वह अलग बढ़ता है और | स्पतियोंको यदि छोड़ दिया जाय तो यह जाति उससे शाखा तैयार होती है। असंयोगिक उत्पा- खारे पानी में मिलती है, ऐसा कहने में कोई हरजा दनमें सिरे के पास की पेशी में बहुत जननपेशियाँ नहीं है। समुद्र के अधिक ठंडे पानी में इन वन- उत्पन्न होती हैं और उनमें भी बालके समान दो स्पियोंकी पूर्णावस्था प्राप्त होती है। इनमें की दो तन्तु होते हैं। इन जनन पेशियोंके बाहर भिन्न भिन्न बनस्पतियोंके शरीरमें बहुत बैचित्र्य होने पर उनसे नयो वहस्पति तैयार होती है इस दिखलाई पड़ता है। सबसे सादे प्रकारको वन- का योगसंभव उत्पादन ऊर्णिकाके समान ही. स्पतियों के शरीर पेशियोंके एकके आगे एक रहने समान तत्वोंके संयोगसे होता है। वाले तन्तु प्रोके होते हैं। किसी किसीमें डालियाँ समुद्र में मिलने वाली कुछ जातियों की पेशि- निकलती हैं और किसी किसी में नहीं निकलती। यो पर चूने के पुट बैठे रहते हैं और इस कारण बहुतेरोका स्थाणु अनेक पेशियोंका नलीके समान वे बहुधा मूगेके समान देख हैं। इस पोला और गोल होता है। उसमें बहुत सी प्रकारकी जातियों में योगसंभाव उत्पादन समान डालियां निकली रहती हैं। कुछका स्थाणु अनेक तत्वोंका न हो कर दो अच्छी तरह पहिचाने जाने पेशीमय, चिपट्टा और फैला रहता है । इस प्रकार वाले स्त्री तथा पुरुष तत्वों के संयोगसे होता है। के दोनों विभागों में वृद्धि एक अग्रस्थित वर्धमान सायफोनेल (Siphonales ) के भेदों की | पेशी ( Apical growing cell ) से होती है । कुछ चाचेरिया (Vaucheria) नामकी जाति मीठे पानी बनस्पतियाँ गोल भी होती हैं। पेशियोंमें बहुधा और भाई जमीनपर मिलती है। उसमें जो एक केन्द्र होता है। रंजित द्रव्य शरीर बहुधा जननपेशियां तैयार होती हैं वे दूसरोंके सदृश सव | गोल या टेढ़ा मेढ़ा होता है उसमें सुधनी रंगका पेशियों में तैयार नहीं होती। केवल सिरेकी द्रव्य होता है और इसी कारण वनस्पतियाँ पेशियोंमें ही होती हैं। सबसे पहले सिरेकी पेशी भी काले तपकिरी रंगको होती हैं । अच्छी फूलती है और फिर उसमें जननपेशी तैयार होती प्रकारसे पूर्णावस्थामै पहुँची हुई वनस्पतियोंकी हैं। वह पेशी इतनी बड़ी होती हैं कि विना शरीररचनामें बहुत सुधारणा दिखलाई पड़ती किसी यन्त्रको सहायतासे ही आंखसे देखी जा | है। वाह्य पेशियोंकी वह सर्वदा वाह्य द्रव्योका सकती है। इस जातिका योगसंभव उत्पादन सामीकरण करती है। दो जातियों में चलनीके भी भिन्न है। प्रथम पेशीमें दो ऊँचे भाग और सदश नलिकाकी तरह एक पेशीजाल देख पड़ता उनके बीचमें पेशी कवच उत्पन्न होता है और है और वह बहुधा औजसद्रव्य ( Aibamon ) फिर उस मूल पेशीसे वे भिन्न होते हैं। वे ऊँचे मिश्रित रसको वहाकर लेजानेका काम करता होगा। भाग फिर बढ़ते हैं और उनको दो पेशियाँ होती समुद्र में रहने वाली जातियां श्राकारमें बहुत हैं। उन दोनोमैसे एक बहुत से पुंस तत्व होते : बड़ी होती हैं। उत्तर समुद्री मिलने वाली लामि- हैं और दूसरी में एकही स्त्री तत्व होता है। भीतर नेरिया ( Laminaria ) नामकी वनस्पतीका रहने वाली पेशीके मुखकी ओर की त्वचा फूट कर आकार चिकने और फैले हुये पत्तेके सदृश उस पेशीमें स्त्रीतत्वके सासनेही एक खिड़कीके | रहता है। उसमें एक डण्ठल भी रहता है समान प्रशस्त जगह होती है। फिर पुंस्तत्वकी पत्ता १० फीट लम्बा रहता है और उसका डण्ठल पेशी फटती है और उसमेंसे पुंस्तत्व बाहर गिरते आधा इंचका मोटा रहता है। दक्षिण ध्र व महा. हैं । और उनमेंका एक पुंस्तत्व खिड़कीके भीतर ! सागर में उगनेवाली ऐसी ही एक वनस्पति है। जाकर स्त्रीतत्वसे संयोगसे एक जननपेशी तैयार वह तहमें उगती है वहाँ एक जाल बनाती है और होती है और उसपर एक कवच श्राता । इस वहींसे उसकी शाखा ऊपर पृष्ट भागपर आकर पेशीसे फिर भागे एक नयी वनस्पति तैयार | फैलती हैं। ये शाखांए २०० से लेकर २२५ फीट होती है। तक लम्बी होती है। दक्षिण ध्रुव महासागर की (१०) पिंगी ( Phaeophyceae ) सुधनी कई जातियां वृक्षके सदृश बढ़ती है। उनके तने रंगकी एक वनस्पति है। यह जाति हरिस पाण मोटे होते है और बहुत ऊचे बढ़ते है । दूसरी कुछ केशकी तरह एक पेशीमय पुच्छविशिष्ट (Flageil- जातियां इससे भी बड़ी होती हैं। इन सबके ।यह