पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३११

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अप्पय्या दिक्षित ज्ञानकोश (अ)२८८ अप्पय्या दीक्षित शक्ति प्रदर्शित करने के लिये अनेक किबन्दन्तियाँ | से मिले थे। अनेक सभाओं में शास्त्रार्थ कर अच्छे प्रचलित है। भविष्य उद्धाटनकी शक्ति के साथ ही अच्छे पण्डितों पर अपना सिक्का जमा दिया था। साथ गानविद्याके भी प्रमुख देवका स्थान भी उसे इनकी विद्वत्ता तथा सदाचार देखकर चन्द्रगिरिके ही प्राप्त हुआ था। इसको पूजा अनेक देशों में राजाको इनके प्रति विशेष श्रद्धा तथा भक्ति उत्पन्न भिन्न भिन्न प्रकारसे हुआ करती थी. किन्तु डेलफी हुई। उसने इन्हें बहुत सी भूमि पारितोषिक रूप के ओरेकल के कारण जो महत्व इसे प्राप्त हुआ से दे डाली जिससे इनके कुल तथा विद्यार्थियों वह सर्वोपरि था। इसकी स्थान स्थानपर अमेक का भली भाँति निर्वाह होता था। इनके लिखे मूर्तियाँ बनाई गई, और कुछ तो उस समयकी हैं | हुए अनेक ग्रन्थ हैं । शिवस्कन्द चन्द्रिका, शिव जिस समय ग्रीस विकासको पराकाष्टा पर | मणि दीपिका शिवकर्णामृत, पञ्चरात्रागम मत- पहुँचा हुआ था। खण्डन, रामायण सारखत, शब्दप्रकाश तथा दो अपोलोनिया-इस नामसे अनेक प्राचीन | कोष इनके लिखे हुए मुख्य ग्रन्थ हैं। इनमें से नगर विख्यात हैं। कदाचित् इस नामकी उत्पत्ति | प्रथमके तीन ग्रन्थ इन्होंने अनेक यज्ञ करनेके बाद ग्रीस देवता अपोलोके ही आधार पर हुई होगी। लिखे थे। 'आत्मार्पण' ग्रन्थके विषयमें तो इनका इन सबमें विख्यात नगर इलीरिया प्रदेशका इसी | कहना था कि बहुत समय तक धतूरेके बीज खा नामका नमर है । यह नगर ऑस ( The Auos) | चुकने पर यह ग्रन्थ लिखना आरम्भ किया था। के दक्षिण तट पर बसा हुआ है। ग्रीस निवासी उनका विश्वास. तथा धारणा थी कि धार्मिक ग्रन्थ कोरिन्थियन जातिवालोंने इसकी नींव डाली थी। लिखनेके पहले प्रात्मशुद्धिकी विशेष आवश्यकता जिस समय मैसिडन तथा इससे युद्ध छिड़ा हुश्रा होती है, और धतूरेमें यह शक्ति वर्तमान है। था उस समय यह नगर एक प्रसिद्ध सैनिक केन्द्र इनका यह ग्रन्थ ऐसा अपूर्व समझा जाता है. कि होरहा था। यह नगर धीरे धीरे अपनी विद्याओं आज भी दक्षिण भारतमें इसका बड़ा मान है। के लिये बड़ा प्रसिद्ध हो गया था। सांख्य, काव्य ये त्रिचनापली, तंजोर तथा मदुरा आदि तथा तत्वज्ञानका तो यह केन्द्र गिना जाता था। स्थानोंके राजाओसे मिले थे। उन्होंने इनकी रोमके प्रसिद्ध अगस्टसने यहींपर विद्याध्ययन विद्वत्ता तथा साधुता पर मुग्ध होकर अनेक पारि. किया था। तोषिक दिये। इससे प्रोत्साहित होकर न्याय, इसी नामका दूसरा नगर काले सागरके तट वेदान्त आदि विषयों पर ४ ग्रन्थ इन्होंने लिखे पर बसा हुआ है और अंशियाँ प्रान्तमें उसका समावेश होता है। यहाँ एक अपोलोकी दिव्य थे। इनमें से आज भी कुबलयानन्द व चित्र मूर्ति है। इस मूर्तिको ल्यूकोलस रोमसे लाया था मीमांसा नामक ग्रन्थ पाये जाते हैं। आरक्ट इसी नामका तीसरा स्थान सिरीन(Cyrene) आदि आधुनिक पण्डितोंका कथन हैं कि 'प्रबोध का मुख्य. बन्दरगाह है। किसी समय यह भी चन्द्रोदय' नामक ग्रंथ इनका लिखा हुआ नहीं है। एक दर्शनीय नगर रहा होगा। इसको पूर्वका- नीलकण्ठ विजय नामक चम्पुकान्य भी इनके पौत्र लीन महत्व इसकी प्राचीन इमारतो तथा खण्ड- नीलकण्ठने लिखा है । (डा. एल्ट जेस रिपोर्ट प्रॉन हरोके देखने ही से स्पष्ट हो जाता है। संस्कृत मैन्युस्कृष्ट न० २ पृ०८)। बृत्तिवार्तिक, अप्पय्या दीक्षित-द्रविड़ जातिके ब्राह्मण ! रत्न परीक्षा तथा सिद्धान्त लेश वेदान्त विषयक थे। ये काञ्चो नगरके समीप रहते थे। इनके नथ इनके प्रसिद्ध है । मध्वमुख कपोल चपेटिका, पिताका नाम नारायण दीक्षित था। इनका समय रामानुजमतविध्वंस, दशकुमार चरित्र संक्षेप, शालिवाहनको पन्द्रहवीं शताब्दीमें विजय नगरके | इनके अनेक प्रसिद्ध ग्रंथ हैं । राजा कृष्ण देवका शासनकाल निश्चित किया ये अत्यन्त निष्ठावान तथा स्वधर्म तत्पर थे। जाता है। इन्होंने कावेरीके तट पर अनेक यश किये । जो कहा जाता है कि बारह वर्षको अवस्थामें ही कोई भी इनसे मिलता उसे शिवस्तुति जकर वेद समाप्त करके इन्होंने शास्त्रका अभ्यास प्रारम्भ सुनाते। निम्न लिखित श्लोक ये बहुधा सुनाया किर दिया था। ये वेदशास्त्र पारंगत, सदाचारी करते थे। धर्मात्मा तथा विशाल हृदयके मनुष्य थे। यही - मुगरौ च पुगरौ च न भेदः पारमार्थिकः। कारण था कि ये शैव तथा वैष्णव दोनों ही में तथापि मामको भक्ति चन्द्रचूड़े प्रधावति ॥ ग्वादरकी दृष्टि से देखे जाते थे। ये बड़े बड़े.पण्डितों अर्थ-वास्तवमें शिव और विष्णुमें कोई भी