पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३१२

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अप्पय्या दिक्षित ज्ञानकोश (अ)२८६ अप्पर भेद नहीं है, किन्तु फिर भी मेरी भक्ति चन्द्र चूड़ तीतं सतरयोः ॥ सञ्चित् सुखमय पूर्णस्वरूपं । ब्रह्म । शिवपर ही जमती है। ॥२॥ भेदाभेदोभय विवर्जितम् ॥ सर्व-द्रष्टा साक्षिमत्रोई ।। इनके विषयमे एक कथा प्रसिद्ध है कि एक भगवत् पादीय मिदं ज्ञानं, सूनोर्गत अज्ञानं ॥ ब्रह्म बाई बार यह एक विष्णुके मन्दिर में दर्शनार्थ गये थे, किल सद्गुरोः कृपया ॥ ३ ॥ किन्तु भूलकर विष्णु-स्तुतिके बदले इन्होंने शिव इस पदसे यह स्पष्ट देख पड़ता है कि भगव- स्तुतिमें ही निम्नांकित श्लोक पढ़ा:- त्पूज्य-पाद शंकराचार्यके सिद्धान्तोंपर इन्हें अटल ज्ञातं पद्मासनस्थं, शशिधर मुकुटं, पञ्चवक्रं त्रिनेत्रशूलम् विश्वास था। अन्तिम समयमें इन्होंने काशी- वजच खड्न परशु मभयदं, दक्ष भागे व हन्तम् । आकर रहनेका विचार किया था किन्तु ग्राम- नागं पाशं च घंटा प्रलयहुतवहं सांकुशं वाम भागे । वासियोंके आग्रहके कारण ये ऐसा न कर सके नानालंकारयुक्तं स्फटिकमणि-निभं पार्वतीशं नमामि । और गाँव ही में रहकर भगवत भजनमें अपना इस श्लोकसे विष्णुकी मूर्ति अदृश्य होकर समय व्यतीत करने लगे। इनके पास पांच शिवलिंग वहाँपर शिवकी मूर्ति प्रकट हो गई। ये अपने | स्फटिकके थे। उससे इन्होंने दो तो ब्राह्मणों को, ध्यानमें इतने मस्त थे कि इन्हें इसकी खबर भी एक अपने भतीजे को. एक अपने पुत्रको दे दिया नहीं थी, किन्तु जब लोगोंने इन्हें चैतन्य कर इससे | और पांचवोंकी स्थापना इन्होंने बिदाम्बरममें सूचित किया तो इन्होंने निम्नलिखित श्लोकसे | कर डाली । कुछ ही समय बाद इन्होंने ६० वर्षकी विष्णु-स्तुति करके वहाँपर फिरसे विष्णु मूर्ति अवस्थामें परलोक गमन किया ! { आधार-ग्रन्थ प्रकट कर दीः- कविचरित्र, अर्वाचीनकोष, आफेक्टका कैटलाग) शान्ताकारं भुजग शयनं पभ नाभं सुरेशम्, अप्पर...सातवीं शताब्दीमें ये विश्वाधारं गगन सदृश, मेघवर्ण शुभाङ्गम् । विख्यात गूढ़वादी तामिल कवि होगये हैं। इनका लक्ष्मीकारतं, कमल नयनं योगभिान गम्यम्, पूरा नाम मरुलनी कियर था। मसलनी कियर बन्दे विष्णु भवभय हर सर्व लोकैक नाथम् ॥ का जन्म बल्लाल वंशमें कुड़लोर जिलेके थिरु अमूर इनके विषयमें ऐसी ही एक और अद्भुत कथा नामक ग्राममें हुआ था। इनकी एक बड़ी बहन है कि एक बार ताताचार्यसे और इनसे शास्त्रार्थ थी। उसका विवाह एक प्रसिद्ध सूवेदारके साथ छिड़ा। ताताचार्यकी विद्वताका डंका सर्वत्र बज होनेवाला था, किन्तु वह विवाह होनेके पूर्व ही रहा था, किन्तु इन्होंने बादाविवादमें उन्हें बड़ी एक युद्धमें मारा गया। माता पिताका भी देहान्त सुगमतासे ही परास्त कर दिया। इसपर ताता. अब तक हो चुका था, अतः उसने भी अग्निमें चार्य बड़े क्रुद्ध हुए और जब यह शास्त्रार्थके उपः प्रवेश कर आत्मसमर्पण का निश्चय कर डाला, किन्तु रान्त व्यंकटपतिरायके दरबारसे अपने घर लौट | फिर अपने छोटे भाईका लालन-पालनका ध्यान रहे थे तो मार्गही में इन्हे मार डालनेके लिए श्राते ही अपना विचार बदल डाला। इस भांति उन्होंने कुछ आदमी नियुक्त किये। किन्तु इसके | इनका लालन-पालन इनकी बहन ही द्वारा हुआ था। पूर्व कि वे मनुष्य इन तक पहुँचे एक असाधारण इस समय जैन धर्मका बड़ा जोर था। बड़े शक्तिने प्रकट होकर उनको मार्ग ही में नाश कर होने पर इनके मनमें भी प्राध्यात्मिक विचारोंकी डाला, और ये सकुशल अपने स्थानपर पहुँच | उत्पत्ति होने लगी। यह तो निश्चयपूर्वक नहीं कहाजा गये। अन्तमें राजाको भी यह बात विदित हुई। सकता कि स्वयं ही अथवा किसी जैन भिक्षुके फेर उसने इन्हें अनेक परितोषिक प्रदान किये और में पड़नेसे, किन्तु इन्होंने भी जैन धर्म खीकार ताताचार्यको बहुत फटकारा । कुछ समयके | कर लिया और इस पर इतना गम्भीर तथा गहन पश्चात् इन्होंने काशी प्रयाग तथा गयाकी यात्रा अध्ययन किया कि पाटलीपुत्र के मुख्य जैनसंघने भी की थी। वहांपर इनसे जगन्नाथरायकी भेट | भी इन्हें अपना गुरु मान लिया। इनके अन्य धर्म हुई। इस यात्राले लौटकर उन्होंने अनेक पार में प्रवेश करनेसे इनकी भगिनीके हृदयको बड़ा मार्थिक विषयपर रचनाये की । उनमेसे एक नीचे धक्का लगा। इधर इनका जीवन पाटलीपुत्रमें दी जाती है:- बड़े श्रानन्दसे कर रहा था जिससे इन्हें अपनी ब्रह्म वाहं किल सद्गुरोः कृपया ॥धू ॥ ब्रह्म वाह, बहन अथवा घरको याद भी नहीं पाती थी। ब्रह्म वाह ॥ सत्य ज्ञानानन्तधनोहं । दृश्यादृश्य मासा एक बार इनको पेटमें बड़ा सांघातिक दर्द उठा। तोतं । हेतु-विहीन सुगम-वरूपं ॥ ब्रह्म ॥१॥ अनेक उपचार किये गये किन्तु रोग क्रमशः बढ़ता मायाविया जीवेश्वरयोः ॥ सर्वाधार चाधिष्ठान ॥ सर्वा- ही गया । अन्त में इन्हें अपनी बहनकी याद आई।