पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३२३

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अफगानिस्तान ज्ञानकोश (अ) ३०० अफगानिस्तान हीन नामक बादशाहने चिङ्ग्रेजखाँसे मुठभेड़ की फतेहखाँ था। अपनी योग्यताके कारण इसका थी। मंगोल आक्रमणके लगभग १०० वर्ष बाद | सिक्का जम गया और अपने अन्य भाइयोंको अच्छे तक अफगानिस्तान इन्हीं लोगोंके हाथमें रहा। अच्छे पदपर दूर दूर नियत करा दिया। महमूद मंगोल शासनकालका इतिहास ठीक ठीक नहीं का पुत्र कामरान बड़ी नीच प्रकृतिका था । इसीके मिलता, किन्तु देशपर इसका प्रभाव अवश्य ही कारण महमूदने अपने मन्त्री के साथ बड़े अत्या- पड़ा । अब भी बहुतसे स्थानोके नाम तथा चार किये और अन्त में उसे मरवा डाला। अपने भाषाके शब्द मङ्गोल व्युत्पतिके ही विदित होते भाई फतेहखाँका बदला चुकाने के लिये सब भाइयों हैं। चौदहवीं शताब्दीके मध्य में कुर्त जातिका | ने उसपर हमला करदिया। किसी भाँति काम- प्रभुत्व पश्चिमीय अफगानिस्तानमें देख पड़ता है। रोनकी मृत्यु तक ( १८४२ ई०) हेरात बचा रहा, इसके शासनमें गोर, हेरात तथा कन्दहार इत्यादि | किन्तु उसकी मृत्यु होते ही उसके मन्त्री यार सभी स्थान थे। मुहम्मदने उसपर कब्जा कर लिया। यह बड़ा इसके पश्चात् इन सब प्रदेशोंको तैमूरने जीत ही चतुर तथा धूर्त था। बाकी देश उन सब लिया था और १५०१ ई० तक ये उसीके वंशजों भाइयोने श्रापसमें बाँट लिया। इनसबोंमें चतुर के हाथमें रहा। इसके पश्चात् बाबर गद्दी पर बुद्धिमान तथा योग्य दोस्त मुहम्मद ही था। बैठा और १५२२ ई० में उसने अरगुणोसे कन्दहार उसके भागमें कावुल आया। १७२३ ई० में नौशेराके छीन लिया। तदनन्तर यह मुगलद्वारा स्थापित विजयके बाद पेशावर तथा सिन्धुनदको दक्षिणीय राज्यका हो भाग रहा । कन्दहार कभी तो मुगलों | भाग सिक्खों के हाथ लगा। अफगानोका प्रभुत्व के हाथमें रहता था कभी ईरानके सूफीवंशके | पञ्जाबसे पहले ही उठ चुका था। सिन्धने आधीन होजाता था। १७३७-३८ ई० में नादिर- १०८ ई० से ही स्वतन्त्रता घोषित कर दी थी। शाहने कन्दहार और काबुल जीत लिया था । १८१६ ई० से काश्मीर स्वतन्त्र होगया था। सूबा इसने अफगानों के साथ बड़ा अच्छा सलूक किया | तुर्किस्तान तो तिमूरशाहकी मृत्युके उपरांतसे हो और बहुतोको अपनी फौजमें भर्ती कर लिया। स्वाधीन होरहा था। अब्दाली वंशका अहमदखाँनामक एक नवयुवक १८०६ ई० में नेपोलियन ईरानमें गड़बड़ इसकी फौज में था। नादिरशाहके बधके उपरांत कर रहा था । इसी कारण श्रानरेबल माउन्ट अफगान लोगोने इसीको अपना राजा चुना। स्टुबर्ट एलफिन्सस्टन शाह शूजाके पास राजदूत नादिरशाहके राज्यका उत्तरी भाग इसके हाथ बनाकर भेजे गये क्योंकि इस समय उन प्रदेशों श्राया। इसने दुर्रानीको उपाधी ग्रहण की जिसका | पर उसीका प्रभुत्व था। इस अंग्रेज राजदूत नर्थ 'श्रपने समयका रत्न' होता है। अफगानि- का पेशावरमें अच्छा स्वागत हुआ। अफगानियों स्तानका इसे पहला राजा कह सकते हैं। इसने से अंग्रेजों का सम्बन्ध होनेका यह पहला ही २६ वर्ष तक बड़ी तत्परता तथा सावधानीसे अवसर था। १८३२ ई० में बुखारासे लौटते राज्य किया। इसने अपने राज्यका बहुत विस्तार | समय लेफटेनेएट अलेक्स वर्नस कावुल भी किया। उसने पानीपतके मैदानमें मराठोंको ठहर चुके थे। अतः जब १३७ ई. में ईरान १७६१ ई० में बड़ी वीरताके साथ हराया, किन्तु | वालोने हेरात पर घेरा डाला और रूस अपनी इससे इसका विशेष लाभ नहीं हुआ। १७७३ कारवाई अलगही कर रहा था तो अंग्रेजों को ई० में बहुत दिनों तक रोगशय्या पर पड़े रह बड़ी चिन्ता होने लगी और अन्तमें गवर्नर जन- कर इसने शरीर त्याग किया। इसकी मृत्युके रलने वनस्को श्रमीर अफगानिस्तानके दरवारमै एश्चात् इसके पुत्रने कन्दहारसे कोबुलको अपनी राजदूत बनाकर रहनेके लिये भेजा । दोस्त राजधानी बदल डाली। इसने बीस वर्ष राज्य मुहम्मदने जो शौं पेश को वह अग्रेजोको खीकार किया और बड़ी तत्परतासे विद्रोहियोंको दवाये | नहीं थी। इधर शाह शूजा बहुत दिनोंसे अंग्रेजी रक्खा। इसके तेइस पुत्र थे। इनमेंसे पाचवाँ राज्यमें पड़ा था। अतः अंग्रेजोने उसे ही गद्दी जमानएमिर्जा अब्दाली बंशके पियादाखाँकी पर बैठाने का निश्चय किया। यहीं से प्रथम सहायतासे राज्यका मालिक बन बैठा। बहुत अफगान युद्धका प्रारम्भ हुआ । तत्कालीन दिनों तक भाई भाइयोंमें घोर युद्ध होता रहा। पञ्जाब नरेश रखीतसिंहने अपने राज्यसे अंग्रेजी इसके पश्चात् शुजाउल मुल्क तथा महसूद गद्दी फौज पार होने देनेमें श्रानाकानी की। किन्तु पर बैठे। महमूदकी सफलताका मुख्य कारण २३८ ई. के मार्च महीनेमें २३००० फोज सिन्ध