पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/६१

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अग्निपुराण ज्ञानकोष (अ) ५१ अग्निपुराण ऐसे सुरक्षित अन्नको नष्ट करनेवालेको ५०० सुवर्ण फेर करके दिया है (यस्तुरखंघटकूपाद्धरेच्छिन्द्यञ्च जुर्माना देना होगा। यदि अनाज न हो तो बाड़ा तां प्रपाम् । स दंडं प्राप्नुयान्मासं दण्ड्यः स्थात् नष्ट करनेवाला निरपराधी है। घर, तालाब, | प्राणिताडणे ॥) दस अथवा अधिक कुम्भ अनाज बाग, खेत, इत्यादिको जबरदस्ती ले लेनेवालेको हरण करने वालेको मृत्यु दंड देना चाहिये । मनु ५०० सुवर्ण आर्थिक दण्ड-खरूप देना चाहिये। स्मृतिके टीको कारने कहा है कि जितने कुम्भ अज्ञानमें भूल करनेवालेको २०० सुवर्ण चुराये हो उससे ११ गुना अधिक अनाज चोरसे जुरमाना करना चाहिये। मर्यादा उल्लंघन करने- | वसूल करना चाहिये। सोना, चाँदी, उत्तम वस्त्र, वालेको २०० पण दण्ड होना चाहिये । ब्राह्मणकी स्त्री, श्रथवा मनुष्यको जो चुरावे उसको प्राणदण्ड अपेक्षा क्षत्रियको २०० गुणा अधिक दण्ड होना | देना चाहिये। चाहिये, वैश्यको क्षत्रियसे २०० गुणा अधिक "येन येन यांगेनस्तेनोनृषु विचेटते । तत्त- और शुद्रको बंधन होना चाहिये। क्षत्रिय, वैश्य देव हरेदस्य प्रत्यादेशाय पार्थिवः ॥" मनुष्यको अथवा शूद्रकी निंदा करनेवाले ब्राह्मणको क्रमा चुराते समय उसके जिस जिस अंगको कष्ट हुश्रा नुसार ५०, २५ और १२ पण दंड होना चाहिये। है चोरके उस उस अंगको काटना चाहिये। यदि क्षत्रियकी निंदा करनेवाले वैश्यको पूर्ववणित दंड ब्राह्मरण शाकधान्यकी चोरी करे तो उसे अपराधी और शूद्रका जिह्वाच्छेद करना चाहिये। ब्राह्मण नहीं समझना चाहिये। किसी गाय अथवा ईश्वर का उपदेश करनेवाले शूद्रको दंड करना चाहिये। के निमत्त चोरी करे तो उसे 'प्रथम' शिक्षा देनी और श्रतदेशादिवितथी अर्थात् बहुश्रत बनने चाहिये। घर, खेत चुराने वाला, स्त्री पर बला. वालोको दुगना दंड करना चाहिये। कार करने वाला, विषप्रयोग करने वाला, आग निरर्थक अथवा सजनाको दोष देने वालोको लगाने वाला, अथवा अस्त्र तान कर चढ़ाई करने ( उत्तम) दंड और अपने दोषको स्वीकार वाला देहान्त शिक्षाका पात्र है। परस्त्रीसे संभा- करने वालेको आधा दंड देना चाहिये। माँ. बाप. षण करने वाला, बिना श्राशाके प्रवेश करने वाला भाई श्वशुर, गुरु इत्यादि लोगोंको गाली देने | दण्ड का पात्र है। स्वयंवर करनेवाली स्त्री दंडपात्र वाला और गुरुको रास्ता न देने वाला १०० पण | नहीं है। उच्च वर्णकी स्त्री से संबंध करने वाले दंडके योग्य है। "अंत्यजातिदिजार्तितु येनाङ्गेनाप नीच वर्णके मनुष्यको मृत्यु दण्ड देना चाहिये। राध्नुयात् तदेवच्छेदयत्तस्यक्षिप्रमेवा विचारयन्।" “भर्तारः लंबयेद्यातांश्वभिः संधातयेस्त्रियम् ।" अन्त्यजाति (नीच जाति ) त्रैवर्णिकोंका जिस अङ्ग पतिको त्याग कर निकलजानेवाली स्त्रीको कुर्ती से अपराध करे उस अङ्गका छेदल करना चाहिये। | से कटवा कर उसे प्राणदण्ड देना चाहिये । वैश्य सभामें बैठे हुए राजाके सामने गर्वसे थूकने वाले | स्त्री-गामी ब्राह्मण, अन्त्यज-गामी क्षत्रिय पूर्ण दंड के होठ काट डालने चाहिये। उसी प्रकारसे | के पात्र है। अपशब्द कहने पर उसके अवयवच्छेदनका उल्लेख सवर्ण दूषित स्त्री को “पिंडयात्रोपजीवि ' है। "यो यदंगं च रुजयेत्तदंगं तस्य कर्तयेत्” । करनी चाहिये । “ज्यायसा” दूपित नारी (वृद्धसे सिंहासनारूढ़ राजाके सामने जमीन पर बैठा हुआ दूषित ) को मुण्डनकी शिक्षा है। धनके लोभसे मनुष्य यदि अपना कोई अङ्ग खुजलावे तो उसका दूसरेके साथ गमन करने वाली स्त्री उस धनके वह अङ्ग काटना चाहिये । गाय, घोड़ा, हाथी, ऊँट दुगुनेकी दण्डपात्र है। भार्या, पुत्र, दास, शिप्य, इत्यादि पशुओका घात करने वाले लोगोंके हाथ | भाई, अथवा सोदर अपराधी हो तो वेतकी छड़ी पैर काटने चाहिये। वृक्षसे कच्चे फलोका नाश | से पीठ पर शिक्षा करनी चाहिये, मस्तक पर नहीं करने वालेका सुवर्ण दण्ड है। जानकारी अथवा मारना चाहिये। अनजानसे जो दूसरे को द्रव्य हरण करता है,सीमा यदि प्रजाके रक्षणार्थ नियत किये हुए अधि- स्थित अथवा राजमार्गके जलाशयों और गो कारियोने घूस ली हो (रक्षार्थाधिकृत ) तो उनकी का जो नाश करता है, उसे दुगुना दंड देना चाहिये। सारी जायदाद जप्त कर उनको निकाल देना कुएँकी डोरी ( रस्सी ) या घटहरण करने वाला चाहिये। जिस काम पर राजा मनुष्यको नियुक्त अथवा पौसरेका नाश करने वाला अथा प्राणियो| करे और यदि उस काममै लोग वाधा डाले तो को मारने वाला “एक मास" के कारावासका ! उनको भी उपयुक्त शिक्षा देनी चाहिये। अमात्य अथवा न्यायाधीश यदि (प्राविवाक) अपना यह श्लोक मनुस्मृतिके आधार पर कुछ हेर कर्तव्य अयोग्यतासे करे तो उसके लिये भी ऊपर ! पात्र है।