पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/८६

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। ज्ञानकोश (अ)७६ अचेष्ट इत्यादि का ध्यान रखना चाहते हैं वे भाँग का यह वायुमण्डलमै बहुत कम प्रमाणमें पाई प्याला पीते हैं और जो पूरी दीक्षा लेना चाहते जाती है। १८६४ ई० के लगभग सौ वर्ष पूर्वतक हैं वह मदिरा पान करते हैं। तत्पश्चात् किनाराम लोगों का यही अनुमान था कि वायुमण्डल की के समयसे ही जो अग्नि अबतक प्रज्वलित रक्खी सब कुछ जानकारी होगई है, अब कोई नवीन गई है उसे फल अर्पण करते हैं और कोई पशु | चीज़ पता लगाने को नहीं रह गई है। वातावरण बलि दिया जाता है । बहुधा बकरे की ही बलि के घटक से तात्पर्य है देशकाल-स्थिति के अनुसार दी जाती है। तदनन्तर गुरूके पेशावसे मुण्डन कराया | अल्पांश में होनेवाली आर्द्रता । कर्बाग्ल वायु जाता है। अन्तमें सब लोग भोजन करते हैं और (Carbonic Acid), उज्जन ( Hydrogen) अम्न दीक्षा क्रिया समाप्त होती है। बारह वर्षके पश्चात् वायु (Arnmonia) इत्यादिके अंश अलग कर देने वह दीक्षित शिष्य पंथमै पूर्ण रूपसे प्रवेश करता है। से वातावरणका मुख्य घटक नत्र ( Nitienger) पहरावा और रुप----इन लोगोंके बहुत से चित्र और प्राण ही बच जाते हैं। अभीतक ऐसा ही जमा किये गये हैं। (Anthropological Society | विश्वास था। सर हेनरी कण्डीशक समय of Bombay. ) इनके चित्रोंसे उनका शरीर तक तो इस विषयमें किसीको ननिक भी सन्देह चिता भस्मसे श्राच्छादित देख पड़ता है। ब्रह्मा, नहीं था। बिष्णु, महेश का एकाकी चिन्ह इनके ललाट पर यह बात ध्यानमें रखने योग्य है कि इसके बना रहता है। रुद्राक्ष, सर्पकी हडियो, सूअरके | श्राविष्कारका अवसर किस भाँति प्राप्त हुश्रा । दाँतों की माला इनके गलेमें पड़ी रहती है। इनके | माउंट द्वारा किये हुए प्रयोग कई वर्ष तक चलते हाथमै नर-कपाल होता है। कभी कभी इनके गले | रहे । उसने मुख्य-वायु उज्जन और नत्रका विशिष्ट में मनुष्यके दांतों की माला भी देख पड़ती है। गुरुत्व देखनेके लिये नवीन प्रयोग श्रारम्भ किये। इनकी आकृति और रूप भयंकर तथा रोमाञ्च- | उसने हर्नन हाकोटकी रीतिके अनुसार ही इसको कारी होता है। श्रमवायुमें मिश्रण करतोष्ण नाँवकंचूर्णसे इसका अचल-(१) यह दुर्योधन का मामा और प्रयोग किया। इसमें ऊष्णताके प्रभावस हवा शकुनि का भाई था। यह अपने सम्पूर्ण कुटुम्बके के प्राणका संयोग अम्नके उजनसे होता है। इस सहित महाभारतके युद्धमै अर्जुन द्वारा मारा | क्रियाके पूर्ण होनेपर यह मिश्रण गंधकामकं साथ गया। अन्य मृत योद्धाओके सदृश इसका भी साथ मिलाकर वह (निर्जल ) शुष्क किया जाता दर्शन धृतराष्ट्र और गन्धारी को युद्धके पश्चात् है। इसमें जा अवशेष नत्र रहता मुख्यतः व्यासजी की कृपासे हो गया था। (महाभारत वह केवल घायुमण्डलका रहता है-अर्थात् श्रम ७-३०-१५-१५.३२८७६) से तय्यार किया हुआ ही नत्रका अंश रहता है। (२) विष्णु सहस्रनामके नामों में से एक नाम। बहुतसे प्रयोगोका फल एक ही श्रानेसे नत्रके अचला-बम्बई प्रान्तके नासिक जिले में विशिष्ट गुरुत्वके सम्बन्धमें कोई शंका नहीं रह चान्दोर पहाड़ पर स्थित एक किला । यह दिंडो गई, बल्कि मुख्य प्रयोगसे यह निश्चय हो गया रीके बीस मील उत्तर स्थित है। १८१८ ई० में कि बिना श्रनके उपयोगके, घटकके प्राणवायुके कैप्टन ब्रिक्ज़ने इसको एक पहाड़ी किला लिखा ! साथ ताम्बेके प्रयोगमें नवका विशिष्ट गुरुत्व ही है और इस पहाड़ की चढ़ाई सीधी होनेसे कठिन होता है। इन प्रयोगोंके फल समान ही रहे। है । इस किले में उस समयकी केवल किलेकी सतह परन्तु हार्कोटकी रीतिसे तैयार किये हुए और दो एकखम्भे पायो जाते हैं, इससे यह अनुमान | नत्रके विशिष्ट गुरुत्वमे १.... का अन्तर देख किया जा सकता है कि किला पूरा बनाही नहीं। पड़ा। इसके बाद हाकोटकी रीतिसे हवा १ भाग वहीं पर छप्पर की एक चौखूटी इमारत थी। लेकर, कंवल शुद्ध प्राणको श्रनमें मिलाकर केवल कदाचित् वह मदिरा वेचने का गुदाम था। १८१८ अम्नसे ही नत्र तैय्यार किया। उसका विशिष्ट ई० में कर्नल मेकडोवेलने त्रिम्बकेश्वरके किलेके गुरुत्व देखनेसे प्रतिशत फरक मिला । हवाके साथ १७ श्रान्य किले जीते थे। उनमैसे ५क यह प्राणवायुके संयोगी-करणको किसी रीतिसे तैयार भी था। (Black Gr's Nathralls War-Page 822) करने पर जो नत्र श्राया, उसके और सपणिद, अन्न अचेष्ट-(आर्गन) वातावरण के वायुमण्डल | और अमोनिनत्रायितसे तैयार किये हुए नत्रके में अन्य मूल द्रव्यो ( tas) के समान यह भी विशिष्ट गुरुत्वमें १० प्रतिशत का फरक पड़ने एक आधुनिक आविष्कृत गैस है। लगा । यदि यह कहा जाय कि यह फरक अशुद्धता