कृपाल कौर ने त्रिलोचन की पोर अपनी सहमी हुई मासा से देखा और मोजेल मे अलग हो गई। त्रिलोचन ने उससे कहा, 'सरदार साहब से कहो कि जल्दी तैयार हो जाए और माताजी से भी-लेकिन जत्दी करो।' इतन मे ऊपर की मजिल से जोर जोर की आवाजें आन लगी, जैस पोर्ट चीख चिल्ला रहा हो और धीगा मुश्ती हो रही हो। कृपाल कौर के मुह म हल्की सी चीख निकल गई । 'उसे पक्ड लिया उहान मिलोचन ने पूछा, रिस ?' कृपाल कौर उत्तर देने ही वाली थी कि मोजेल ने उसको वाह से पक्डा और घरीटवर एक कोने म ले गई । 'पक्ड लिया तो अच्छा हुमा । तुम य रपटे उतार दो।' कृपान कौर अभी कुछ सोचन भी न पाई थी कि माजेल ने पलक झपकन म उनी कमीज उतारकर एक तरफ रख दी । कृपाल कौर ने अपनी बाहा मे अपन नग शरीर को छिपा लिया तथा पार भयभीत हो गई । त्रिलोचन न मुह दूसरी पोर फेर लिया। मोजेल न अपना ढीला- ढाला कुर्ता उतारकर उमे पहना दिया, और स्वय नग धडग हो गई। पिर जल्दी जल्दी उसन कृपाल कौर का नाडा ढीला किया और उसकी सलवार उतारकर ग्रिलोचन स बोला, 'जामो, इसे ले जामो–लेकिन ठहरो ।' यह कहकर उसन कृपाल कौर के बाल खोल दिए और उसस कहा, 'जामो-जल्दी निकल जायो। त्रिलोचन न उसमें कहा, 'सानो ।' लेकिन फिर तुरत ही रक गया। पलटकर उसन मोजेल की ओर दसा, जो धुले हुए दीदे की तरह नगी खडी थी। उसकी बाहा पर महीन महीन वाल सरदी के कारण जागे हुए थे। तुम जाते क्या नही ?' मोजेल के स्वर मे चिडचिडापन था। प्रिलोचन ने धीमे से कहा, 'इसके मा वाप भी तो हैं।' 'जह नुम म जाए वे-तुम इसे ले जाओ।' और तुम मोजेन / 101
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