'जाती हूँ, तुम मेरे पीछे पाना बड़ी तजी स, जसे तुम मेरा पीछा कर रह हो समझे ? मगर यह सब एकदम जल्दी जल्दी म हो।' माजल ने मिलोचन के जवाब की प्रतीक्षा न की और नुवड वाली बिल्डिंग की पोर खडाऊ खटखटाती हुइ तजी भागी। त्रिलोचन भी उसके पीछे दौडा। कुछ ही क्षणा म व विल्डिग के अरथ । मोडियो के पाम मिलोचन हाफ रहा था, मगर मोजेल बिलकुल ठीक ठाई थी। उमने बिलोचन स पूछा कौन सा माला ? निनावन ने अपन सूखे होउ पर जीभ परी । "भूमग । "चलो।' यह कहकर यह खट-खट मीढिया चडने लगी। धितोचन उसके पीछे हो लिया। सीढिया पर सून वे बड़े बड़े धरे पड़े हुए थे । उनको दाब देखकर उसका खून सूख रहा था। दूसरे माल पर पहुचे तो कारीडोर में कुछ दूर जाकर निनाचन न धीमे से एक दरवाजे को खटखटाया। मोजेल दूर सीढिया के पास खडी त्रिलोचन ने एक बार फिर दरवाजा खटखटाया और उसके साथ मह लगाकर आवाज दी, महङ्गासिंह जी, महासिंह जी ।' अदर से वारीय सी आवाज माई, कौन ।' त्रिलोचन।' दरवाजा धीर स खुला। त्रिलोचन न मोजेल को इशारा किया। वह लपक्पर प्राइ । दाना अटर चल गए। माजेल न अपनी बगल म एक दुबली पतली पडकी को देखा जो बहुत ही भयभीत थी। माजल न उम एक सण के लिए ध्यान से दसा । पतर पतले नक्सा थे । नार बहुत ही 'प्यारी थी लेकिन जुकाम से ग्रस्त । मोजेल ने उसे अपन चौडे चकल सीन स लगाया और अपने ढीले ढाले कुर्ते मा परला उठाकर उसकी नाक पाछी। त्रिलोचन लाल पड गया। माजेल ने कृपाल कौर स वड स्नह से कहा डरो नही, त्रिलोचन तुम्ह लेन पाया है। 100/ टोबा टेकामह
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