पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१६२

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मम्मी ने बडे दुख मोर क्रोध से कहा, तुम कैसे लोग हो - मुझे खबर क्यो न की फिर उसने गरीवनवाज , मुझे और वनक्तरे को विभिन हिदायतें दी - एक को चडढे के पाव सहलाने की , दूसरे को वरफ लाने की और तीसर को पखा करने की । चड्ढे की हालत देखकर उसकी अपनी हालत विगड गई थी, लेकिन उसन धय से काम लिया और डाक्टर बुलाने चली गई । ___ मालूम नही, रजीतकुमार को गैरेज मे कैसे पता चला । वह मम्मी के जान के तुरत बाद घबराया हुग्ना पाया । उसके पूछने पर वनफ्तरे ने चडढे के बेहोश होने की घटना का वणन कर दिया और यह भी बता दिया कि मम्मी डाक्टर के पास गई है । यह सुनकर रजीतकुमार की वेचनी किसी हद तक दूर हो गई ।

___ मैंन देखा कि व तीनो बहुत सतुष्ट थे, मानो चडढे के स्वास्थ्य की सारी जिम्मेदारी मम्मी ने अपने ऊपर ले ली हो ।

उसकी हिदायत के अनुसार चडढे के पाव सहलाए जा रहे थे सिर पर बरफ की पट्टिया रखी जा रही थी । मम्मी जब डाक्टर लेकर पाई तो वह कुछ-कुछ हो मेमा चुका था । डाक्टर ने मुमायने में काफी देर लगाई । उसके चेहरे से मालूम होता था कि चडढे की जिदगी खतर मे है । मुमायने के बाद डाक्टर ने मम्मी को इशारा किया और वे कमरे से बाहर चले गए - मैंने सलाखा वाली खिडकी मे से देखा, गरज वे टाट का परदा हिल रहा था ।

थोडी देर बाद मम्मी पाई । गरीबनवाज , वनपतरे और रजीतकुमार से उसने एक एक करके कहा कि घबराने की कोई बात नहीं । चडढा अब पाखें खोलकर सुन रहा था । मम्मी को उसने पाश्चय की दष्टि स नहीं देखा था , लेकिन वह उलझन सी जरूर महसूस कर रहा था । कुछ क्षणो के बाद जब वह समझ गया कि मम्मी क्यो और कसे पाई है, तो उसने मम्मी का हाथ अपने हाथ में ले लिया और दबाकर कहा, मम्मी , यू भार ग्रेट ____ मम्मी उसके पास पलग पर बैठ गई । वह ममता की साक्षात मूर्ति थी । उसने चड्ढे के तपते हुए माथे पर हाथ फेरकर मुस्करात हुए केवल

मम्मी / 159