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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१७२

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'मेरी जेब में।' चडढे न मेरी जेब मे हाथ डाला। सौ मौ के चार नोट निकले और मुझसे कहा, 'अाज शाम को मम्मी के यहा पहुच जाना—एक पार्टी है।' मैं उस पार्टी के बारे मे उससे कुछ पूछने ही वाला था कि वह चला गया । वह शिथिलता और उदासीनता, जो मैंने कुछ दिन पहले उसमे महसूस की थी, वैमी की वैसी थी। वह कुछ वचन भी था। मैंने उसके बारे में सोचना चाहा, लेकिन दिमाग तैयार न हुआ । वह कहानी के दिलचस्प हिस्से की पटकथा में बुरी तरह फसा हुआ था। अपने पुराने फिल्मो के साथी को वीवी से अपनी बीवी की बातें करके शाम को साढे पाच बजे के करीव मैं वहा से चलकर सात बजे सईदा काटेज पहुचा । गैरेज के बाहर अलगनी पर गीले गीले पोतडे लटक रहे थे और नल के पास अकील और शकील' शीरी के बडे लडके के साथ खेल रहे ये। गैरेज के टाट का परदा हटा हुआ था और शीरी उनसे शायद बातें कर रही थी। मुझे देखकर वे चुप हो गए । मैंने चड्ढे के बारे में पूछा तो अकील ने कहा कि वह मम्मी के घर मिल जाएगा। मैं वहा पहुचा तो देखा, एक शोर मचा हुआ था। सब नाच रहे थे। गरीवनवाज पोलो के साथ, रजीतकुमार किटी और एलिमा के साथ और वनकतरे थैलिमा के साथ । वह उसको क्याफ्ली की मुद्राए बता रहा था। चडढा मम्मी को गोद में उठाए इधर उधर कूद रहा था। सब नशे मे थे। एक तूफान मचा हुआ था । मैं अदर पहुचा तो भबसे पहले चडढे ने नारा लगाया। इसके बाद देशी-विदेशी आवाजो का एक गोला-सा फटा, जिसकी गूज देर तक पानो मे सरसराती रही। मम्मी वडे तपाक से मिली -ऐसे तपाक से जो बेतवल्लुफी की हद तक बढा हुआ था। मेरा हाथ उसने अपने हाथ में लेकर कहा, 'क्सि मी डीयर ।' लेकिन उसने स्वय ही मेरा एक गाल चूम लिया और घसीटकर नाचने वालो के झुरमुट मे ले गई। चड्ढा ने एकदम पुकारा, 'वद क्रो-प्रव शराव का दौर चलेगा।" फिर उसने नौकर को आवाज दी, 'स्काटलैण्ड के शहजादे । ह्विस्की की नई बोतल लामो !' स्काटलण्ड का राहजादा नई बोतल ले आया । नशे मे घुत् था, खोलने लगा तो हाथ से गिरी और चकनाचूर हो गई। मम्मी मम्मी / 169