पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१८२

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खूब बधाइया दी । भोलू के जो खास दोस्त थे, उहोने उसको छेडा और पहली रात के लिए कई सफल गुर वताए । भोलू चुपचाप सुनता रहा । उसकी भाभी ने ऊपर कोठे पर टाट के पर्दे के नीचे विस्तर का बदोबस्त कर दिया । गामा ने मोतिए के चार बडे बडे हार तक्येि के पास रख दिए । एक दोस्त उसके लिए जलेविया वाला दूध ले आया ।

दर तक वह नीचे क्वाटर मे अपनी दुलहन के पास बैठा रहा । वह वैचारी शम के मारे, सिर झुकाए, घूघट काढे, सिमटी हुई थी । सरत गर्मी थी । भोलू का नया कुर्ता उसके जिस्म के साथ पसीने से चिपका हुआ था । वह पखा भल रहा था , पर हवा जसे विलकुल गायब हो गई थी । भोलू ने पहले सोचा था कि वह ऊपर कोठे पर नहीं जाएगा, नीचे क्वाटर मे ही रात काटगा , पर जव गर्मी असह य हो गई, तब वह उठा और उसने दुल हन से चलन के लिए कहा ।

रात आधी से ज्यादा वीत चुकी थी । सारे क्वाटर खामोशी मे लिपटे हुए थे । भोलू को इस बात का स तोप था कि सब लोग सो रहे हाग । कोई उसको नही देखेगा । चुपचाप, दवे पाव , वह अपने टाट के पर्दे के पीछे, अपनी दुलहन समेत घुस जाएगा और सुबह मुह अधरे ही नीचे उतर पाएगा । ___ जव वह कोठे पर पहुचा तो बिलकुल सनाटा था । दुलहन ने शरमाये हुए कदम उठाए तो पायल के रुपहले घुघरू बजने लगे । एक्दम भोलू ने महसूस किया कि चारो तरफ जो नीद विखरी हुई थी , वह जैसे चौक्कर जाग पडी है । चारपाइया पर लोग करवटें बदलने लगे । सासने- खखारने की प्रावाने इधर उधर उभरने लगी । भालू ने घबराकर अपनी बीवी का हाथ पक्डा और तजी से टाट पी ओट में चला गया । दबी दवी एक हसी वी आवाज उसके कागो के साथ टकराई । उसकी घबराहट बढ़ गई । बीवी से बात की , तो पास ही खुसुर पुमुर गुरु हो गई । दूर कोने मे , जहा पल्लन की जगह थी , चारपाई की चर चू चर चू होन लगी । वह धीमी पडी तो गामा की लोहे की चारपाई बोलन लगी ।

इदू हलवाई की कुमारी लडकी शादा ने दो -तीन बार उठकर पानी पिया । घड़े के साथ उसका गिनास टकराता तो एक छनाका सा पंदा

नगी आवाजें | 179