पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१८३

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होता । परे साई के लड की चारपाई स बार वार माचिस जलान का आवाज माती थी ।

नालू अपनी दुलहन से कोई वान न र सका । उसे डर था कि प्रास पास के सुले हुए कान पौरन उसकी बात निगल जाएगे और सारी चार पाइया घर चू चर- च करन नगेंगी । दम साधे वह चुपचाप नेटा रहा है कभी कभी सहमी हुई निगाह में अपनी जोरू की तरफ दस तेता , जो गठरी सी बनी दूसरी चारपाई पर पड़ी थी । कुछ देर यह जागती रही,

फिर सो गई ।

भोल न चाहा कि वह भी सो जाए, पर उस नीद न पाई । थाडी थोडी दर पे बाद उसके काना में आवाजें माती या भावाजें , जो पौरन तसवीरें बनकर उसकी आखा के सामन स गुजर जाती थी ।

उस मन म बडी उमगे थी , वडा जोग था । जब उसने शादी का इरादा किया था नो वे सार मजे जिनसे वह अपरिचित था , उसके दिल दिमाग म चक्कर लगात रहत थ । उस एक गर्मी महसूस हाती थी - वडी सुख गौं । मगर अब जैस पली रात स उसे कोई दिलचस्पी ही न थी । उसने जगत मे कई बार यह दिलचस्पी पदा रन की कोशिश की , लेकिन भावानें - - तसवीरें सोचन वाली आवाजें- - मब कुछ अन्त यस्त कर देती । वह अपने प्रापका नगा महस्म परता,बिलकुल नगा जिसका चारा ओर से लोग पाखें फाड- फाडकर देख रह हो और हस रह हा ।

मुबह चार बजे के करीब वह उठा । बाहर निक्लपर उसन ठण्डे पानी का एक गिलास पिया । कुछ साचा, वह झिमक जा उसक मन म २४ गई थी , उसको किसी हद तक दूर किया । पर उपडी हवा चल रही थी जो कापी तेज थी । भोल की निगाहें फोन की तरफ घूमी । “ कानन का धिमा हुमा टाट हिल रहा था । वह अपनी बीवी पास बिलकुल नग धडग लटा था । भील को बडी पिन लगी । माथ ही गुम्मा भी पाया कि हवा एसे मोठों पर क्या चरती है चलती है तो टाटा को क्यो छेटती है ? जी म माया दियोठे पर जितन टाट हैं , मब नोच डाने और नगा होरर नाचन !

भोलू नीचे उतर पाया । जव दाम पर निपलाताई दास्त मिल ।

180 / टोबा टेकसिंह