सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सवन उमसे सुहागरात या हाल पूछा । फूजे दर्जी न उसको र ही से प्रावाज दी क्या उस्ताद भोलू , वैसे रह ? कही हमारे नाम पर वटटा तो नहा लगा दिया ?

छागे टीनसाज न उसस वड भेद भर स्वर म कहा देसो अगर कुछ गडबड है तो बता दो एव वडा अच्छा नुस्सा मेरे पास है ।

वाल न उसक ध पर जोर का हाथ मारा और पूछा, कहो पहल वान, वमा रहा दगल

भोलू चुप रहा ।

सुबह उमकी बीवी मायके चली गई । पाच छ दिन के बाद लौटी तो भोलू को फिर उसी मुसीबत का सामना करना पडा । कोठे पर सोन वाले जम उसकी बीवी के आने का इतजार कर रहे थे । कुछ रातें सामोश रही थी , लकिन जब वे ऊपर सोए तो फिर वही सुसुर पुमुर , वही चर चू चर चू , वही खासना -खखारना, वही पड़े के साथगिलास के टकराने

छनावे , करवटा पर करवटें , दबी दबी हसी । भोलू सारी रात अपनी चारपाई पर लेटा आसमान की ओर देखता रहा । कभी कभी एक ठण्डी माह भरकर अपनी दुलहन को देख लेता और मन म कुढता मुझ क्या हो गया है । मुझे क्या हो गया है ?" यह मुझे क्या हो गया है ?

सात राता तब यही होता रहा । पासिर तग आकर भोलू न अपनी दुलहन को मायके भेज दिया । बीस पच्चीस दिन बीत गए तो गामा न भोलू स बहा, तुम अजीव प्रातमी हो । नई नई शादी , और वीवी को मायक् भेज दिया । इतन दिन हो गए उसे गए हुए , तुम अकेल सोत

कैस हो "

भोल न सिप इतना कहा ठीक है ।

गामा न पूछा, ठीय क्या है ? जो बात है, बताओ क्या तुम्ह पसद नही आई प्रायशा ?

यह वात नहीं है । यह वात नही है तो और क्या बात है ?

भोलू वात गोल कर गया । पर थोडे ही दिनो बाद उसके भाई ने फिर बात छेडी । भोलू उठकर क्वाटर के बाहर चला गया । बाहर एक

नगी आवाजें | 181