पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१८६

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हतक

दिन भर की थको मादी वह अभी अपने बिस्तर पर लेटी थी और लेटते ही सो गई थी । म्युनिसिपल कमेटी का सफाई-दारोगा, जिसे वह सेठ के नाम से पुकारा करती थी , अभी अभी उसकी हड्डिया पसलिया झमोडवर , पराब के नगे मे धुर, वापस घर को चला गया था । वह रात को यही ठहर जाता, पर उसे अपनी धमपत्नी का बहुत खयाल था, जो उससे बेहद प्रेम परती थी । ___ वे रुपये, जो उसने अपन शारीरिक परिश्रम के बदले में , उस दारोगा से वसूल किए थे, उसकी चुस्त और थूक भरी चोली के नीचे से ऊपर को उभरे हुए थे । कभी कभी सास के उतार चढाव से चादी के य सिक्के बन खनाने लगते और उनकी खनखनाहट उसके दिल की बेसुरी धडका में घुल मिल जाती । ऐमा मालूम होना था कि उन सिक्को की चादी पिघल कर उसके दिल के खून मे टपक रही है ।

उसका सीना अदर से तप रहा था । यह गर्मी, कुछ तो उस बरण्डी की वजह से थी , जिसका अदा दारोगा अपने साथ लाया था और कुछ उस क्ष्योडे का नतीजा थी , जिसको, सोडा खत्म होने पर, दोनो न पानी मिलाकर पिया था ।

वह सागौन के लम्वे चौडे पलग पर औंधे मुह लेटी हुई थी । उसकी वाहें , जो धो तब नगी थी , पतग की उस पाप की तरह फैली हुई थी , जो प्रोस म भीग जाने के कारण पतले कागज से अलग हो जाए । दायें बाजू की बगल म झुरिया भरामास उभरा हुआ था , जो बार -बार मुडने की वजह स नीली काली रगत का हो गया था । लगता था , जैसे नुची हुई मुर्गी की साल का एक टुकडा वहा पर रख दिया गया है । ___ कमरा बहुत छोटा था , जिनम अनगिनत चीजें बतरत्तीवी के साथ बिखरी हुई थी । तीन चार सूखी सडी चप्पलें पलग के नीचे पड़ी थी , जिनके ऊपर मुह रखकर , एक खाज मारा कुत्ता सो रहा था और नीद में

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