पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१८७

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किसी अनजान चीज को मुह चिटा रहा था । उस कुत्ते के बाल खुजली के कारण जगह जगह से उडे हुए थे । दूर से अगर कोई कुत्ते को दखता तो ममझना दि पर पोछन वाला पुराना टाट दोहरा कर जमीन पर रखा

हुअा है ।

उस तरफ छोटी सी दीवारगीर पर, सिंगार का समान रखा था गाला पर लगान को सुर्सी, लाल रग की लिपस्टिक , पाउडर, कधी और. लोहे को पिन ,जिह शायद वह अपन जूडे म लगाया करती थी । पास ही एक लम्बी सूटी के साथ तोते का पिंजरा लटक रहा था , जिसमे तोता गदन को अपनी पीठ के बाला मे छिपाए सो रहा था ।पिंजरा कच्चे अम स्द के टुकडो और गले हुए मातरे के छिलको से भरा हुआ था । उन बद बूदार टुकडो पर छोटे- छोटे काले रंग के मच्छर या पतग उड रहे थे ।

पलग के पास ही एक बेंत की कुर्सी पडी थी , जिसकी पीठ लगातार सिर टेकन की वजह से बेहद मैली हो रही थी । कुर्सी के दायें हाथ को एक सुदर तिपाई थी जिसपर हिज मास्टस वायस का पोर्टेबल नामो फोन पडा था । उस ग्रामोफोन पर मढे हुए काले कपडे की बहुत बुरी हालत थी । सुइया तिपाई के अलावा वमरे के हर कोने मे बिखरी पड़ी यो । उस ग्रामोफोन के ठीक ऊपर दीवार पर चार फेम लटक रहे थे , जिनमे अलग अलग व्यक्तियो को तस्वीरें जडी थी ।

इन तस्वीरा से जरा इधर हटकर , यानी दरवाजे में दाखिल होते ही , वाई तरफ की दीवार के कोने मे , चौखटे में जडा , गणेशजी का , बडे ही भडकीले रंग का चित्र था , जो ताजा और सूखे फ्ला से लदा हुआ था । लगता था , यह चित्र कपडे के किसी थान से उतारकर फ्रेम कराया गया था । उस चित्र के माथ, छोटे- से ताक पर, जोकि वहद चिकना हो रहा था , तेल की एक प्याली धरी थी , जो दीय को जलाने के लिए वहा रखी गई थी । पास ही दीया पडा था , जिसकी ली हवा बद होने की वजह से , माथे के तिलक की तरह सीधी खडी थी । उस दीवारगीर पर धूप बत्ती की छोटी बडी मरोडिया भी पड़ी थी । __ जब वह वोहनी करती थी तो दूर से गणेशजी की उस भूति से रुपये छुपाकर और फिर अपने माथे के साथ लगाकर, उह अपनी चोली में रस 184 / टोवा टैकसिंह