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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१८८

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लिया करती थी । उसकी छातिया चूरि काफी उभरी हुई थी , इसलिए वह जितने रपये भी अपनी चोली म रखती, सुरक्षित पड़े रहते । अलबत्ता कभी कभी जब माधो पूने से छुट्टी लेकर पाता तो उसे अपने कुछ रुपये पलग के पाए के नीचे उस छोट-से गड्ढे मे छिपान पडत थे, जो उसने खास तौर पर इसी काम के लिए खोद रखा था । माधो से रपये बचाए रखने का यह तरीका सुगधी को रामलाल दलाल ने बताया था । __ _ उसने जब यह सुना था कि माधो पूने से पावर सुगधी पर धावे बोलता है तो कहा था , उस साले को तून कब से यार बनाया है ? यह बडी अनोखी आशिकी माशुकी है । साला एक पसा पानी जेब से निकालता नही और तरे साथ मजे उडाता है । मजे अलग रह, तुमसे कुछ ल भी मरता है सुगधी, मुझे कुछ दाल मे काला नजर आता है । उस साले में कोई बात जरूर है, जो वह तुझे पा गया है सात साल से यह धधा कर रहा हूँ । मैं तुम छोकरिया की सारी कमजोरिया जानता हू ।

यह कहकर रामलाल दलाल ने , जो बम्बई शहर के विभिन्न भागो म दम रुपये से लेकर सो स्पय लेने वाली एक सौ बीस छोकरियो का धधा करता था , मुगधी को बताया , साली, अपना धन यो वरवाद न पर तरे तन पर स य कपडे भी उतारकर ले जाएगा वह तेरी मा का यार । इस पलग के पाये के नीचे छोटा सा गडढा सोदकर , उमम सार पसे दवा दिया कर और जब वह यहा आया पर तो उसमें कहा कर तेरी जान की क्सम माधो, प्राज सुवह स एक धेल का मुह नहीं देखा । थाहर पाले से वहकर एक कोप चाय और अफनातून विस्कुट तो मगा । भूस में मेरे पेट मे चूहे दौड रहे हैं । - समझी ? समय बहुत सराव प्रा गया है मेरी जान इस साली कामेसन शराव बद करके बाजार बिलकुल मदा कर दिया है पर तुझे तो कही न कही से पीन को मिल जाती है । भगवान यसम , जब तेरे यहा कभी रात को खाली की हुई बोतल देसता हू और दारू की वास सूघता हूँ तो जी चाहता है, तेरी जून म चला जाऊ ।

सुगधीवो अपन जिस्म में सबसे ज्यादा अपना सीना पसद था । एक बार जमुना ने उसस वहा था , नीचे से इन बम के गोला को बाधकर रसा

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