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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/२०६

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मालूम होता था कि पोटो उतरवाते समय उसे बडी तकलीफ हो रही है। सुगन्धी खिलखिलावर हस पडी~ उसकी हसी कुछ ऐमी तोसी और नुकीली थी कि माधो को सुझ्या सी चुभी। पलग पर स उठकर वह सुगधी के पास प्रा गया, विमली तस्वीर देखकर तू इतने जोर मे हमी मुगधी न वाए हाथ की पहली तस्वीर की तरफ इशारा पिया, जो म्युनिसिपैलिटी के सफाई-दारोगा की थी, 'इसकी मुनशीपालटी वे इस दारोगा की जरा देख तो इमका थोबडा, पहता था, एक रानी मुभपर मानित हो गई थी ऊह । यह मुह और मसूर की दाल ' यह कहकर सुगधीन फेम को इस जोर से खोचा कि दीवार मे से कील भी पलस्तर सहित उखड पाई। माधो का अचरज अभी दूर न हुअा था कि सुगधी ने फ्रेम को खिडकी से बाहर फेंक दिया। दो मजिला से वह फ्रेम नीचे जमीन पर गिरा और काच टूटन की झनकार मुनाई दी। सुगधी ने उस भनकार के साथ कहा, 'रानी भगिन वचरा उठाने आएगी तो मेरे इस राजा को भी माध ले जाएगी। एक बार फिर उसी नुकीली और तीसी हसी की फुहार सुगधी के होंठो से गिरनी शुरु हुई, जैसे वह उनपर चाकू या छुरी की धार तेज कर रही हो। माधो बड़ी मुश्किल से मुम्बराया । फिर हसा, 'ही-ही ही । सुगधी ने दूसरा फेम भी तोच लिया और खिड़की से बाहर फेंक दिया, 'इस साले का यहा क्या मतलब है ? भोण्डी शक्ल का कोई प्रादमी यहा नहीं रहगा क्यो माधा ?' माधो फिर बडी मुश्किल से मुस्कराया और फिर हसा, 'ही ही. हो ।" एक हाथ से सुगधी ने पगडी वाले की तस्वीर उतारी और दूसरा उस फेम की तरफ बताया, जिसमे माधो का फोटो जडा था। माधो अपनी जगह पर सिमट गया, जैसे हाथ उसीकी तरफ बढ़ रहा हो । पल भर में फ्रेम कील सहित सुग बी के हाथ मे था । हतक | 203