पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/२०७

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जोर का ठहाका लगाकर उसन 'ऊह' की और दोनो फेम एकमाथ खिडकी मे से बाहर फेंक दिए। दो मजिला से जव फेम जमीन पर गिरे और काच टूटन की आवाज आई तो माधो को ऐसा मालूम हुमा कि उसके अन्दर कोई चीज टूट गई है । बढी मुश्किल से उसने हसकर इतना कहा, अच्छा पिया। मुझे भी यह फोटो पसद नही था।' धीर धीरे सुगन्धी माधो के पास आई और कहने लगी तुझे यह फोटा पस द नही था पर मैं पूछती ह, तुझमे है ऐसी कौन मी चीत, जो क्सिीको पसद पा सकती है-यह तरी पकौडे सी नाक, यह तरा बाना भरा माथा, ये तरे मूजे हुए नथुने ये तरे मुडे हुए कान, यह तर मुह की वास यह तर बदा का मैल | तुझे अपना फोटो पसद नहीं था। ऊह | पसद क्या होता, तेरे ऐब जो छिपा रखे थे उसने आजकल जमाना ही ऐसा है जो ऐन छिपाए वही बुरा माधो पीछे हटता गया । पाखिर जब वह दीवार के साथ लग गया तो उसने अपनी आवाज म जोर पैदा करके वहा 'दग्प सुगधी, मुझे ऐसा दिसाइ देता है कि तूने फिर स अपना घधा शुरु कर दिया है अब तुझसे प्रातिरी बार कहता हू सुगधी न इससे आगे माधो की नकल उतारते हुए कहना गुरु क्यिा 'अगर तून फिर से अपना धधा गुरू किया तो बस तरी मेरी टूट जाएगी। अगर तून फिर क्मिीको अपने यहा ठहराया तो चुटिया से पक्डकर तुझे बाहर निकाल दूगा इस महीन का सच मैं पूना पहुचत ही मनीपाडर कर दूगा हा क्या भाटा है इस खोली का?' माधो चकरा गया। मुग धी ने कहना गुम् क्यिा, 'मैं बताती हू, पद्रह स्पया भाडा है इस और दम रपया भादा है मेरा और जैसा तुझे मालूम है, अढाई रपय दलाल के । वाकी रह साढे मात, रह न साढे मात ? उन साढे सात स्पल्लिया म मैंने ऐमी चीज दने का वचन दिया था जो मैं द ही नही मक्ती थी और तू ऐसी चीज लेन पाया था, जो तू ले ही नही सक्ता था तेरा मेरा नाता ही क्या था? कुछ भी नहीं | वस, य दस रपय तरे और मरे बीच में बज रहे थे, सो हम दोना ने मिलकर ऐसी बात खोली का 204 / टोवा टेकसिंह