वे लगभग खान मादि से निरटकर वापन मापर तुरत सो जाता था। इस बीच म मदद भाई म मुलाकात हो सकती थी। मैंने कई बार सोचा पि वाम पर न जाऊ और सारा दिन अरव गली में गुजार कर ममद भाई को देखन पी वोशिश क्स, लेकिन अफ्मोस कि म ऐसा न पर मया, इसलिए कि मेरी नौररी बड़ी बहा ढग की थी। ममद भाई से मुलाकात करा की सोच ही रहा था कि अचानक इपलुए जा ने मुभ पर घार प्राप्रमण पिया-ऐसा प्रारमण कि मैं बौखला गया । मुझे भय था कि यह विग पर कही निमोनिया में परिवर्तित न हो जाय क्योषि परब गली के एक डाक्टर ने ऐसा ही रहा था । मैं वित्युल प्रवेमा था । मरे साथ जो एक व्यक्ति रहता था, उस पूना मे एक नौकरी मिल गई थी, इमलिए वह भी पाम न था । बुखार म फुरा जा रहा था, प्याम इतनी लगती थी कि जो पानी सोली में रमा था मेरे लिए काफी नही था, और मित्र सम्बधी वाई पास नहीं था जो मेरी देस रेख करता । मैं बहुत सख्त जान' हूँ, दम्प रेख की मुझे प्राय आवश्यकता नही हुआ करती, लेकिन न जाने वह वैमा चुमार था, पलुए जा था, मलेरिया था या कुछ और था, लेकिन उसने मेरी रोड को हड़ी तोड दी। मैं बिल- बिलान लगा । मेरे मन म पहली बार इच्छा उत्पन हुई कि मेरे पास कोई हो जो मुझ ढारस दै। ढारस 7 दे तो कम में क्म क्षण भर के लिए अपनी शक्ल दिवाकर चला जाय, तारि मुझे इसीस ढारस हो जाय किं कोई मुझे पूछन वाला भी है। दो दिन तक में बिस्तर पर पडा कराहता रहा, लेकिन कोई न पाया -माता भी कौन ? मेरी जान पहचान के आदमी ही क्तिने ये-दो, तीन या चार-और वे इतनी टूर रहत थे दि उह मेरी मत्यु का भी पता न चल सकता था। और फिर यहा वम्बई म कौन क्सिको पूछता है-- कोई मर या जिए उनी बला से । मेरी बहुत दुरी हालत थी । आशिक हुमैन नतक की पत्नी बीमार थो, इसलिए वह अपन घर जा चुका था। यह मुझे होटल के छोरे न बताया था। अब मैं किसस बुलाता बडी निढाल स्थिति मे था और सोच रहा था कि स्वय नीचे उतरू ? ममद भाई/211
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