पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/२८

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, कर रहा था जव तुमन कहा सुशिया है तो मैंन सोचा, अपना खुशिया ही तो है प्रान दो बस यही बात उसे खाए जा रही थी। साली मुस्करा रही थी वह वार वार बडबडाता । जिस तरह वातानगी थी उसी तरह उमकी मुस्कराहट खुशिया को नगी नजर आई थी। यह मुस्कराहट ही नहीं, उस काता का जिम्म भी इम हद तक नगा दिखाई दिया था जैस उसपर र दा फिरा हुआ हो। उस वार बार वचपन व दिन याद आ रह थ जव पडोस की एक औरत उसस कहा करती थी, 'सुशिया वेटा जा दौडकर जा, यह बाल्टी पानी स भर ला। जब वह वाल्टी भरकर लाया करता था तो वह धोती से बनाए हुए पर्दे क पीछे स वहा करती थी, 'अदर पाकर यहा मेरे पास रख दे । मैंन मुह पर सावुन मला हुआ है। मुझ कुछ सुझाई नही दता। वह घोती का पर्दा हटापर वाल्टी उसके पास रख दिया करता था। उस समय साबुन की झाग म निपटी हुई नगी औरत उस नजर आती थी पर उसके मन म किसी तरह की उथल पुथल पदा नहीं होती थी। 'भई में उस समय वच्चा था। विलकुल भोला भाला। वच्चे और मद म बहुत फर होता है । वच्चा स कौन पर्दा करता है । मगर अब तो मैं पूरा मद हू । मरी उम्र इस वक्त लगभग अटठाईम बरम की है और अटठाईस बरस के जवान आदमी के सामन तो कोई बूटी औरत भी नगी खडी नहीं होती।' कान्ता न उस क्या समझा था? क्या उसमे वे सारी बातें नही थी, जो एक नौजवान मद म होती है ? इसमे कोई शक नहीं कि वह काता को एकाएक नग घडग देखकर बहुत घबरा गया था लेकिन चोर निगाहो स क्या उसने काता की उन चीजा का जायजा नहीं लिया था, जो रोजाना इस्तमाल के बावजूद अमली हालत पर कायम थी। क्या चकित रह जान के बावजूद, उसके दिमाग म यह खयाल नही पाया था कि दस रुपये म काता विलकुल महगी नही और दशहरे के दिन बक का वह बाबू जो दो रुपये की रिमायत न मिलने पर वापस चला गया था, बिल- बुल गया था और इन सबके ऊपर, क्या एक क्षण के लिए उसके सारे पुटठो मे एक अजीब किस्म का तनाव नही पैदा हो गया था? और खुशिया | 27 ?