पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/५७

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आसमान का फ्क है। ऐसी बहुत-सी बातें होती हैं जो पूछनी नही चाहिए, खद समझना चाहिए।' सुलताना ने थोडी देर तक शवर की इस बात को समझने की कोशिश की। फिर कहा 'मैं समझ गयी। 'तो कहो क्या इरादा है ?" तुम जीते मैं हारी-~पर मैं कहती हू, आज तक किसीने ऐसी बात कुबूल न की होगी।' 'तुम गलत कहती हो, इसी मुहल्ले मे तुम्ह ऐसी बेवकूफ औरतें भी मिल जाएगी जो कभी यकीन नहीं करेंगी कि औरत ऐसी जिल्लत कुबूल कर सकती है जो तुम बिना महसूस किए कुबूल करती हो। लेकिन उनके यकीन न करने के बावजूद तुम हजारा की तादाद मे मौजूद हो, तुम्हारा नाम सुलताना है ना?' 'सुलताना ही है।' शकर उठ खडा हुआ और हसते हुए बोला, 'मेरा नाम गर है , यह नाम भी अजीब उटपटाग होते हैं । चलो आयो अादर चलें।' शकर और सुलता जब दरी वाले कमरे मे वापस आए तो दोनो हस रह थे , न जाने किस बात पर । जव शकर जाने लगा तो मुलताना ने कहा, शकर मेरी एक वात मानोगे ?' 'पहले वात बताओ। सुलताना कुछ झेप गई, तुम कहोगे कि मैं दाम वमूल करना चाहती हूँ मगर कहो, कहो , रक क्यो गई?' सुलताना ने साहस स काम लेते हुए कहा बात यह है कि मुहरम आ रहा है और मेरे पास इतने पैसे नहीं कि मैं काली सलवार बनवा सकू , यहा के सारे दुखडे तो तुम मुझसे सुन ही चुके हो । कमीज और दुपट्टा मेरे पास मौजूद था जो मैंने अाज रगने के लिए दिया है।' शकर यह सुनकर बोला, तुम चाहती हो कि मैं तुम्हें कुछ रुपये दे 58/टोदा टेकसिंह