दीवार का महारा लेकर मसऊ ने अपन शरीर को तोला और इस प्रकार धीरे-धीरे क्लसूम की जाया पर अपन पैर जमाए कि उसका प्राधा बोझ वही गायब हो गया। धीरे धीरे बडी सावधानी स उसन पैर चलान शुरू दिए। फ्लमूम की जाधो मे अबडी हुई मछलिया उसके पैरा के नीचे दब दबकर इधर-उधर फिसलन लगी। ममऊट ने एक बार स्कूल मे तन हुए रस्से पर एक बाजीगर को चलत देखा था। उसने सोचा शिवाजीयर ये पैरा के नीचे तना हुआ रस्सा इमी प्रकार फिसलता होगा। इसस पहले भी कई बार उसने अपनी बहन कलसूम की टागें दवाई थी, लेकिन वह प्रानन्द, जो उसे अब पा रहा था, पहले कभी न पाया था। बकरे के गम- गम गोश्त का उसे बार बार बयान पाता था। एक दो बार उमने मोचा, नसूम का अगर जिवह दिया जाय तो खाल उतर जाने पर क्या उसके गोत मे मे भी धुप्रा निकलेगा लेकिन ऐसी बेहूदा बातें सोचन पर उसने अपने आपको अपराधी मा अनुभव किया और अपने मस्तिष्क को इस प्रकार साफ कर दिया जसे वह स्लेट को स्पज से साफ किया करता था। 'बस बस, क्लसूम थक गई, 'वस-वस ।' मसऊद को एक्दम शरारत भूझो । वह पलग मे नीचे उतरन लगी तो उसन क्लमूम के दोना बगलो में गुदगुदी करना शुरू कर दी। यह हसी के मारे लोट पाट हान लगी । इतनी शक्ति भी उसम न रही कि वह मस- कर के हाथा को पर झटर दे, लेकिन जब कोशिश कर उसने ममऊद को लात जमानी चाही ता मसऊद उछलकर जद स बाहर हो गया और स्लीपर पह्नवर कमरे से बाहर हो गया। जब वह प्रागन में पहुचा तो उसने देखा कि हल्की हल्की बूदाबादी हो रही थी, बादल और भी भुर पाए थे। पानी की नन्ही नही किसी प्रकार की आवाज पदा किए विना प्रागन की इटो में धीरे धीरे जग्व हो रही थी। मसऊ का बदन वडी प्रिय उष्णता का अनुभव कर रहा था। जब हवा का एक ठण्डा झाका उमके गाना स टकराया और दो तीन नन्ही नही बूदें उमकी नाम पर पड़ी तो उस वदन एक घुमा 175
पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/७४
दिखावट