। झुरझुरी सी लहरा उठी । सामन कोठे की दीवार पर एक क्वूतर और एक कबूतरी पास पास पख फुलाए बैठे थे। ऐसा मालूम होता था वि दोना दमपुरत की हुई हडिया की तरह गम है । गुले दाम्दी और नाजबी के हरे हर पत्ते उपर लाल-लाल गमला म हा रह थे। वातावरण में नीदें घुली हुई थी, ऐसी नीदें जिनम जागरण अधिक होता है और मनुष्य के इद गिद नम नम सपने इस प्रकार लिपट जाते है जस ऊनी कपडा । मसऊद एसी बातें सोचन लगा, जिनका अथ उसकी समझ में नहीं प्राता था। वह उन बातो को छूकर देख सकता था लेकिन उनका अथ उसकी पकट से बाहर था। फिर भी एक अनाम सा आनद उसे इस मोच विचार में आ रहा था। पारिश में कुछ दर खडे रहने के कारण जब मसऊद के हाथ विल-- कुल ठण्डे हो गए और दबाने से उनपर सफेद सफेद धब्बे पड़ने लगे तो उसने मुट्ठिया कस ली और उनको मुह की भाप से गम करना शुरू किया ऐसा करने से हाथो को कुछ गर्मी तो पहुची लेकिन वे सजल हो गए। अतएव आग तापने के लिए वह रसोईघर मे चला गया। खाना तैयार था । अभी उसा पहला कौर ही उठाया था कि उसका बाप कब्रिस्तान से वापस आ गया। बाप बेटे मे कोई बात नहीं हुई। मसउद की मा तुरत उठकर दूसरे कमरे में चली गई और वहा देर तक अपने पति स बातें करती रही। साने स निपटकर मसऊद बैठक म चला गया और खिडकी खोलकर फ्श पर लेट गया। बारिश के कारण सर्दी बढ गई थी और हवा भी चलने लगी थी, लेकिन मसऊद को यह सर्दी अप्रिय नही लग रही थी। तालाब के पानी की तरह यह उपर से ठण्डा और भीतर से गम थी। मसऊद जब फश पर लेटा तो उसके मन मे इच्छा उत्पन हुई कि वह उस सर्दी के भीतर बस जाए, जहा उसके शरीर को आन ददायक गर्मी पहुचने लग । काफी देर तक वह ऐसी नीम गम वातो के बारे मे सोचता रहा और इस कारण उसके पुट्ठो मे हल्की हल्की दुखन पैदा हो गई। एक दो बार उसने अगडाई ली तो उसे मजा आया। उसके शरीर के किसी भाग में, यह उसे मालूम नही था कि कहा, कोई चीज अटक सी गई थी। यह 76/ टोवा टेप सिंह
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