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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/७६

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चीज क्या थी, इसरा भी मसऊद को कुछ पान न था। अलबत्ता इस भटकाव ने उसके प्रे गरीर म बेचनी, एक दगी हुई बचनी को स्थिति उत्पन कर दी थी। उसका सारा गरीर सिंचवर लम्बा हो जान का इराठा बन गया था। दर तक गुदगुदे बालीन पर करवटें बदलन के बाद वह उठा और रसोईघर से होता हुआ प्रागन म मा निक्ला । न कोई रसोईघर म था और न प्रागन म । इधर-उधर जितनभर पेमवये सब बदाय। बारिश अब रुक गई थी। मसऊद न हावी और गेंद निकाली और प्रागन में पेलना शुरू कर दिया। एक बार जब उसन जार म हिट लगाई तो गेंद प्रागन के दायें हाथ वाले रमर के दरवाजे पर लगी । भीतर स मसऊद के बाप की आवाज आई, बौन ? 'जो मैं ह मम। भीतर म अावाज माई 'क्या कर रहे हो ?' 'जी खेल रहा है।' 'सेना' फिर थोडी दर वाद उमरे बाप ने कहा, 'तुम्हारी मा मरा सिर दवा रही है ज्याला शोर न मचाना।' यह सुनकर मसऊद ने गेंद यही पडी रहने दी और हामी हाथ म लिए सामन वाले कमर की ओर चना। उसका एक दरवाजा पूरा भिडा हुग्रा था और दूसरा प्राधा--मसऊद को एक गरारत सूझी। दवे पार वह अभिड दरवाजे की ओर बढा और धमाके वे माय दोनो पट खोल दिए। दो ची उभरी और कसम और उसकी सहली विमला न, जा पास पास लेटी हुइ थी भयभीत होकर भट स लिहाफ गोट लिया । विमला के ताउज चे बटन खुल हुए थे और कलमूम उम नग्न वनस्थल का धूर रही थी। ममऊब कुछ न समझ सका । उसके दिमाग पर धुग्रा मा छा गया । वहा म उपटे दम लौटकर वह जब बैठक की ओर चला तो अपस्मात् अपन भीतर एम अथाह शक्ति रा अनुभव हुमा, जिसन लिए उसकी सोचन-समझने को दाक्ति हर ली। धुमा/27