पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/७८

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मोजेल निमोचन न पहनी वार, चार वर्षों में पहली वार, रात को आकाश दया था पार वह भी इसलिए कि उसकी तबीयत बहुत घबराई हुई थी और वह केरल पुती हवा म कुछ दर सोचन के लिए अडवानी चैम्बज में दरेस पर चला पाया था। प्राकाम विल्कुत साफ था और बहुत बडे साकी तम्बू की तरह पूरी बम्बई पर नना हुआ था । जहा तक दष्टि जा सकती थी, बत्तिया ही वनिया नजर आती थी। विनोचन का एसा महम होता था कि भाका से बहुत मे तार झडर बिल्डिगो म, जा रात के अधेर म बडे- बड पड लगती थी, अटक गए थे और जुगनुप्रा की तरह टिमटिमा रहे थे। त्रिलोचन के लिए यह एक बिल्कुल नया अनुभव, एक नई स्थिति थी-रात को खुले आकाश के नीचे सोना। उसने अनुभव किया कि वह चार वर्ष तक अपने पनट मे कद रहा तथा प्रकृति की एक बहुत बडी दन स वचित । लगभग तीन बजे थे। हवा बड़ी हल्की पुकी थी। रिलोचन पमे की कृत्रिम हवा का प्रादी था जो उसक पूरे गरीर को बोझिन कर देती थी । सुबह उठकर वह सदा एमा अनुभव करता था, मानो उमे रात भर मारा पीटा गया हो । लेकिन अब सुबह को प्राकृतिक हवा म उसपे गरीर का रोम रोम तरोताजगी चूसपर तप्त हो रहा था। जब वह ऊपर भाया था तो उसका दिल बहद बचन था। लेकिन माधे घण्ट मे हो जो बचनी और घबराहट उस क्प्ट द रही थी, विमी हद तक दूर हो गयी थी। अब यह स्पष्ट रूप से सोच सकता था। कृपाल कौर और उसका सारा परिवार मुहल्ले म था, जो पट्टर मुमतमाना का पद था। यहा कई घरा म आग लग चुकी थी। कई जानें जा चुकी थी । त्रिलोचन उन सबको यहा सेल पाया होता, लेकिन मुमीवत यह थी वि वफ्यू लग गया था और वह भी न जाने रितन घण्टो के लिए । शायद पडतालीस घण्टों के लिए! और ग्रिलोचन विवश था। 79