पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/१२

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कवि ठाकुर कौन की कासों कहौं दिन देखि दशा विसरइत है। अपने अटके सुनु ऐरीभटू निज सौति के मायके जइयत है ॥४॥

वृन्दासी वृन्द अनेक छली तहँ गूजरी नेह सो को अंग टोहै। भौर की नाव भयो मन ज्यों अब जानि परी बलही जग जो है। ठाकुर वे ब्रज ठाकुर हैं सु बनी न बनी उनको सब सोहै। मीर बड़े २ जात बहे तहॅं ढोलियै पार लगावत को है॥५॥

प्रथम व द्वितीय असनी वाले ठाकुरों की कविता में बेरामी (बीमारी) बरोठा (पौर ) बनायकै (बिलकुल) वैहर (पवन) झुकामुकी (बडे तड़के जब कोई पहचान नहीं सकै) किवाड़ देना (किवाड़ बन्द करना)दारार खाना (फट जाना) इत्यादि ऐसे शब्द हैं जो अधिकतर अन्तरवेद में बोले जाते हैं। और 'उलायत (जल्दी ) तपरी ( बनिज ) धूर देना (चुनौती देना) बदिक (हठ करके) इत्यादि ऐसे शब्द है जो बुन्देलखण्ड ही में बोले जाते हैं।

असनी वाले दोनों ठाकुर भट्ट जाति के थे । जैतपुरी ठाकुर कायस्थ थे। इन्हीं कायस्थ ठाकुर की यह जीवनी है।

जीवनी

आपका पूरा नाम ठाकुरदास था । श्रीवास्तव खरे कायस्थ थे। पिता का नाम गुलाबराय था ! जैसे रायगुलाब का प्रसून सब गुलाब पुष्पों से अधिकतम सुगन्धित होता है वैसे ही ये गुलाबराय जी के प्रसून (प्रख्यात सुवन ) भी हुए। पिता के नाम को सार्थक करने वाले पुत्र चिरते ही होते हैं पिता के नाम को सार्थक करने के अतिरिक्त इन्होंने अपने नाम को भी सार्थक किया है। भाषा रलिक सज्जनों में से कौन ऐसा होगा जो ठाकुर की कविता का आदर न करता हो । अतएव यदि हम इन्हें भाषारसिकों का ठाकुर (बादशाह)