पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/६१

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ठाकुर ठसक ३० ठाकुर कहत पिक पीकि पीकि पी को रटैं, प्यारो परदेश पापी प्रान तरलतु है । झूमि भूमि झुकि झुकि झमंकि झमकि आली, रिमझिम झिभिकि असाढ़ बरसतु है ॥ १२२ ॥ आये बढि चढ़ि के उमण्डि नभमण्डल में, द्यौल करि डारे जिन भेष रतियान के। खूद डारी धरनि सरन जल पूरि डारे, चूर करि डार सुख बिा हो तियान के । ठाकुर कहत प्यारी आनद उमंग भरी, जोबन का चोज मौज ब्यौत बतियान के। देख री असाढ़ के उराडे एंड़े बड़े झला, अजब अनोखे अलवेली वदियान के ।। १२३ ॥ हिंडोरा वर्णन वृन्दाबन युगु नमोर परना के धाम स्याम, अभिराम राधे ओर दृग जोरे हैं। सावन को तीज तजबीज के बसन सूहे, पहिरे विमल जामें सौरभ झकोरे हैं। ठाकुर कहत देन दरस दयाल भये, देखत देखैयन के चित्त लेत चोरे हैं। बोलती हैं माएँ होती घनन की घोरै बीर, दोनों गठजार आजु झूलत हिंडोरे हैं !! १२४ ॥ सलानो वर्णन घर के न बाहर के काहे को करत धैर, गरजी तमास की हौं बरजी न ही मैं। पन्ना ( ना में पन्ना को परना बोलते हैं)में युगल किशोरीजी का एक मंदिर है जिसमे हीरा जवाहिरादि जड़े हैं।