पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/६२

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ठाकुर-उसक आजु शुभ सावन सलोनो को परब पाय, अंग अंग सुभग सिंगारन बनहीं मैं ॥ ठाकुर कहत संग सग प्रजबालन के. रंग भरे राछरे उमंगन सों गैहीं मैं देखि रक्षाबंधन गोबिंद जू के हाथ साथ, राधे की कजलिया निरावन को जैही में ॥ १२ ॥ दशहरा वर्णन धम धम धौंसन की धुनि मुनि लाजै धन, फहरै निसान आसमान अग छठे हैं। केहरी करिंद मार हंस मृमा नादिया है, और सब बाहन उमाहन उमैठे हैं। ठाकुर हित सुर असुर समूह नर. नारिन के जूह नंद मन्दिर में पैठे हैं आऔ चले लीजिये जू कीजिये जनम धन्य, करुणानिधान कान्ह पान देन बैठे हैं ॥ १२६ ॥ मानव प्रकृति वर्णन ब.र बीच अधिक अधीन है डरात फिर, बार बीच लगै याहि जम की न गीत है बार बीच परम धरम के करम करे, बार बीच भावै थाहि अधम अनीत है। ठाकुर कहत बार बीच रस-रङ्गी रस-भङ्गी, बार बीच याहि कैसे कोऊ जीतहै। हैं जे वे मन आपने ते जानत हैं, मानुष के मन की निपट बाँकी रीत है।। १२७ १