पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/६८

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gs ठाकुर-ठसक पहर .पहर पर भारी भय भो रहे। दान किरवान समै ग्यान गुन स्थान समै, सब जादे मिटि के हरामजादे हो रहे ॥१४५॥ ऐरी मेरी बीर कन्त कौन पै कमान जाइ, राजन की मतिऊ पै चलै ना उपाव री, तन धन छीन भयो मनुआ मलीन भयो, मनसा बिकल कल पावत न बावरी ॥ ठाकुर कहत या जहान में जबुर फैली; मैली भई मति कछु जतन बताव री। खैबै कौ जु सौंहि राखी कैबे को सुपाप राख्यौ, लैबे कौं अजस अरु दैबे को सुलावरी ॥१४॥ वे परवीन विचच्छन लोग बने सब पै कछु आन भये री। चीखे सवाद महा अति मीठे सु सीखे सुभाइ नये ही नये री। ठाकुर कौन सौं का कहिये अब वे चित-चाहिबो वे समये री। वे दिन वे सुख वैसे उछाह सु वे सब बोर हिराय गये री। चाल न वा चरचान वाचातुरीवा रसरीति न प्रीति कोढौर है। सांच घटो बढ़ा झूठ जहान में लोभ के लाने जहां तहां दौर है। ठाकुर वेई गोपाल वही हम वोही चबाउ बनो इकठौर है। मेरेइ देखत मेरी भटू सिगरो ब्रज है गयो और को और है लोकोक्ति लक्षक काव्य (सवैया) दान दया बिन दीबो कहा अरु लीबो कड़ा जब आपु ते मांगो। प्राण गए रस पीबो कहा पग छीबो कहा उर प्रेम न जागो। नारि कहा जेहि लाज तजी गुरु कीबो कहा भ्रम दूरिन भागो। या जग में फिर जीबो कहा जब आँगुरी लोग उठावन लागो। राखे हते मह रावरे को बल मान गुमान बड़ी गरुवाई।