ठाकुर कवि का जीवनचरित
ठाकुर कवि के मद्धे शिवसिंह, मिस्टर ग्रियर्सन और बाबू
हरिश्चन्द्र जी ने संदेह तो किया परन्तु निश्चय करने का कष्ट
किसी ने नहीं उठाया। कायस्थ कविमाला नामक ग्रंथ के प्रस्तुत
करने में जब मुझे कायस्थ कवियों की जीवनियों की खोज हुई
तव.शात हुआ कि ठाकुर उपनामधारी कई एक कवि हुए हैं
जिनमें से तीन ठाकुर बहुत प्रख्यात हुये हैं । एक प्राचीन ठाकुर
कवि असनी जिला फतेपुर निवासी जो संवत् १७०० के लगभग
हुए । दूसरे नरहरि वंशी असनी निवासी ठाकुर कवि जिनके
पिता का नाम ऋषिनाथ था और जिन्होंने संवत् १८६१ वैक-
मीय में बिहारी सतसई को टीका (देवकीनन्दन टीका) बनाई
है। इनका बहुत कुछ वर्णन साहित्याचार्य पंडित अम्बिकादत्त
व्यास ने अपने बिहारी बिहार नामक ग्रंथ में लिखा है। तीसरे
बुंदेलखंडोन्तर्गत जैतपुर निवासी ठाकुर कवि हुए जिनका
जीवनचरित्र इस लेख में लिखा है। अब यह प्रश्न पैदा हो
सकता है कि कौन कबिताया सवैया किस ठाकुर का है। इसका
उत्तर मेरी ओरसे यह है कि मैंने इन तीनों ठाकुरों की कविता
बड़े ध्यान से पढ़ी है और जहाँ तक मेरी बुद्धि में आया यही
निश्चय हुआ है कि दोनों असनी निवासी ठाकुरों की कविता
बहुत मिलती जुलती पुराने ढंग की है। एक स्थान निवासी
होने के कारण भाषामें भी बहुत कम अन्तर है। साहित्य के बंधनों
से जकड़ी हुई, नायिकाभेद, अलंकार,नखशिख और षटऋतु के
व्यास भीतर ही घूमकर रहजाने वाली है। उनकी भाषा में
अन्तरवेदीय शब्द और बोलचाल के प्रचलित मुहावरे पाये
पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/८
दिखावट
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
ठाकुर कवि का जीवनचरित