पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/७४

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ठाकुर-ठमक ऐसी रंगी रति के रंग में घर बाहिर लोग लिदै सब हारे ।। ठाकुर ताको इहै फल पैयत दालर रैन अनन्द बिसारे। ऊधौ लू दोष तुम्हें न उन्हें हम ग्राही पार पाथर पारे ।१८॥ देखे घनस्याम मैं कही के छवि भाई मोहि, या सुनि लगाय के गोपाल लो अरझती। तादिन तें ननद जिठानी मोसो ठानी रार, पास औ परोख बसें तेऊ आन खिझती।। ठाकुर कहत कैसे बलिये री ऐसे बाल, ऐसी ऐसो बा जहाजित नौ सिरजती,। देखति हैं। ब्रज की लुगाइन भयो घी कहा, खेत कीकहे ले खरियान की समझती।१२। कहि श्रावत ह्यां की कुरीत लखें न तौ का इती बात चलाइये मैं तुम पांच को सात लगाओ भले भला पैहो कहाखिसियाइवे में।। कवि ठाकुर राम के राज करो दुख पावती जो समझाइबे में। हमै वाश कहै को प्रयोजन का बुनिने मैं न बोन बजाइये मैं ।१८३। फुटकर (उद्धव बचन कृष्णप्रति) आय जुरी बिजुरी सी कितेकड प्रेम प्रवाह कथा तिन बांची। ऊधो सुनो तुम ऊधो सुनो तुम ऊधो सनो तुम या धुनि मांची। ठाकुर कौन सों का कहिये गति देखि कै मेरो गिरा तहँ नाची। हां इतनी कहने ई परो हमें सांची है सांचो है सांचो है सांची। तुलसीकृत काव्य की समालोचना वेद मत संमत पुराण उपुरानन को शंभु को बिलास इतिहास तरसत है।